
असरदार है जादू भरी आवाज, संगीत से रोगों का इलाज (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘निशानेबाज, महाराष्ट्र के अहिल्यानगर में संगीत चिकित्सा का अनोखा प्रयोग हुआ है। वहां तनाव और अवसाद के मरीज इस म्यूजिक थेरेपी से खुश व संतुष्ट हो गए। उनका डिप्रेशन दूर हो गया। सरोज आल्हाट व उनकी टीम ने मरीजों को पसंदीदा गाने, गजलें व भक्ति संगीत सुनाया। गिटार, सिंथेसाइजर भी बजाया। इससे एक 90 वर्ष की दादी जो लंबे समय से बिस्तर पर पड़ी थी, वाकर की मदद से चलने लगी।
संगीत चिकित्सा करनेवालों का दावा है कि इससे कैन्सर और पारकिंसंस के मरीजों को भी लाभ पहुंच सकता है। ’ हमने कहा, ‘यदि संगीत सुनकर बीमार अच्छे होने लगे तो डॉक्टर, अस्पताल और दवाइयों का क्या होगा? हमें तो इस बात पर विश्वास नहीं है। क्या मरीज को लगी सलाइन हटाकर उसके कान में ईयरफोन लगाकर गाना सुनाने से वह अच्छा हो जाएगा?’ पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज, मन प्रसन्न हो जाए तो तन भी दुरुस्त होने लगता है। भगवान कृष्ण जब बांसुरी बजाते थे तो सारी गाय दौड़ी चली आती थीं। ब्रज की गोपियां बंसी की धुन सुनकर मंत्रमुग्ध हो जाती थीं। इंसान ही नहीं, प्रकृति पर भी संगीत का प्रभाव पड़ता है। गोशाला में मधुर संगीत बजाने पर गाय अधिक दूध देने लगीं।
तानसेन मेघ मल्हार गाते थे तो वर्षा होने लगती थी। दीपकराग गाने से दीये अपने आप जलने लगते थे। संगीत में अनेक राग होते हैं जिनमें यमन, भैरवी, भूपाली, काफी, भीमपलासी, बागेश्री, मल्हार, खमाज, आसावरी, कल्याण, मालकौंस आदि हैं। ’ हमने कहा, ‘पुराना फिल्मी संगीत भी मन को लुभाता था। मोहम्मद रफी ने गाया था- मन तड़पत हरिदर्शन को आज! लता मंगेशकर, मुकेश, किशोरकुमार, मन्ना डे, हेमंत कुमार के गीतों का कुछ अलग ही आनंद था।
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आज वह मेलोडी गायब हो गई। इतने पर भी पं. रविशंकर का सितार, पन्नालाल घोष व हरिप्रसाद चौरसिया की बांसुरी, बिसमिल्ला खां की शहनाई भारतीय संगीत का अमर अध्याय रहे हैं। किसी का मन बेचैन हो तो उसका मूड ठीक करने के लिए सुना दीजिए- नाचे मन मोरा मगन तिग धा धीगी-धीगी, बदरा घिर आए, ऋतु है भीगी-भीगी!’
लेख-चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा






