
राष्ट्रपति के रेफरेंस पर सुको का संतुलित फैसला (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: सुप्रीम कोर्ट की 5 सदस्यीय संविधान पीठ ने संतुलित दृष्टिकोण अपनाते हुए कहा कि राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों को मंजूरी देने के लिए राष्ट्रपति व राज्यपालों पर कोई समय सीमा लागू नहीं की जा सकती।राष्ट्रपति व राज्यपाल के कार्यकलाप न्यायालय के दायरे में नहीं आते फिर भी यदि विलंब होगा तो दखल दिया जा सकता है।न्यायिक समीक्षा की बात केवल तब उठती है जब विधेयक कानून बन जाता है।
यह मामला तमिलनाडु के राज्यपाल और राज्य सरकार के बीच हुए विवाद से उठा था।उस समय 8 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट की 2 जजों की बेंच ने आदेश दिया था कि राज्यपाल के पास कोई वीटो पॉवर नहीं है और राज्यपाल की ओर से भेजे गए विधेयक पर राष्ट्रपति को 3 माह के भीतर फैसला लेना होगा।राज्यपाल का बिल को रोके रहना या स्वीकृति देने में अत्यधिक विलंब करना अवैध व गलत है।इसके बाद राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 14 प्रश्न पूछते हुए सुप्रीम कोर्ट से राय मांगी थी।8 महीने की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपने ही आदेश को ओवररूल करते हुए कहा कि विधेयकों की मंजूरी के लिए डेडलाइन तय नहीं की जा सकती।
राष्ट्रपति ने संविधान के अनुच्छेद 200 व 201 के तहत राज्यपाल की शक्तियों की व्याख्या करने का रिफरेंस सुप्रीम कोर्ट को भेजा था।उनके 14 में से 11 प्रश्नों का उत्तर सुप्रीम कोर्ट ने दे दिया तथा शेष प्रश्न बगैर किसी प्रतिसाद के वापस भेज दिए।अब सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी विधेयक पर राष्ट्रपति या राज्यपाल की कार्रवाई को अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती।अदालत राज्यपाल को सिर्फ इतना निर्देश दे सकती है कि वे अनुच्छेद 200 के तहत उचित समय में निर्णय लें लेकिन उनके गुण-दोष पर टिप्पणी नहीं कर सकती।राज्यपाल की मंजूरी को कोर्ट नहीं बदल सकता।राज्यपाल किसी बिल को कानून बनाने के बीच की प्रक्रिया में सिर्फ एक रबर स्टैंप नहीं है।
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देश के 75 वर्ष के इतिहास में संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत राष्ट्रपति द्वारा सुप्रीम कोर्ट को भेजा गया यह 16वां रेफरेंस था।सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि राष्ट्रपति का रेफरेंस राय या सलाह मांगने जैसा था और वह तमिलनाडु मामले में पहले दिया गया 2 जजों की बेंच का फैसला नहीं उलट रहा है।सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने ‘जगमगानेवाला’ करार दिया।राष्ट्रपति के रेफरेंस का विरोध करनेवाले कपिल सिब्बल ने इसे सुविचारित व सतर्कतापूर्ण बताया।इसमें संघीय संतुलन, अधिकारों के विभाजन तथा कार्यपालिका के विवेक जैसे मुद्दों की रक्षा की गई है तथा मध्यम मार्ग अपनाया गया है।
लेख-चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा






