स्थानीय चुनाव कराने का अब मुहूर्त निकला (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र की मनपा, नपा, जिला परिषद, पंचायत समिति व नगर पंचायत की चुनाव प्रक्रिया 4 माह में पूरा करने का आदेश दिया है। इस तरह कोरोना काल से अटके हुए स्थानीय निकाय चुनाव अब हो पाएंगे। 4 सप्ताह के भीतर चुनाव की अधिसूचना जारी करनी होगी। ओबीसी आरक्षण, प्रभाग रचना जैसे मुद्दों को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अगस्त 2022 में यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया था। तबसे पौने 3 वर्ष बीत गए। इन मुद्दों पर अब भी सुनवाई बाकी है किंतु अब न्यायालय ने अंतिम फैसले के अधीन रहते हुए चुनाव कराने की अनुमति दी है।
सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की है कि बुनियादी स्तर से लोकतंत्र को मिलनेवाले संवैधानिक जनमत का सम्मान होना चाहिए। वास्तव में स्थानीय चुनाव में इतना विलंब न्यायालयीन प्रक्रिया की वजह से हुआ है। ओबीसी आरक्षण तब ज्वलंत मुद्दा बन गया था। महाराष्ट्र सरकार ओबीसी के पिछड़ेपन की बात सिद्ध नहीं कर पाई थी जिस वजह से सुप्रीम कोर्ट ने दिसंबर 2021 में ओबीसी समाज का राजनीतिक आरक्षण रद्द कर दिया था। इसी तरह ओबीसी समाज का पिछड़ापन सिद्ध करने के लिए तिहरे परिक्षण का आदेश दिया था। राज्य में सत्ता परिवर्तन होने पर महायुति सरकार ने पूर्व मुख्य सचिव जयंतकुमार बांठिया के नेतृत्व में आयोग नियुक्त कर ओबीसी की आंकड़ेवारी एकत्र कर रिपोर्ट पेश की। इस दौरान मध्यप्रदेश सरकार की ओबीसी आरक्षण संबंधी रिपोर्ट स्वीकार कर सुप्रीम कोर्ट ने ओबीसी का राजनीतिक आरक्षण बहाल कर दिया। इसी के आधार पर महाराष्ट्र सरकार ने रिपोर्ट दाखिल की।
बांठिया आयोग के अनुसार आरक्षण का प्रावधान राज्य सरकार ने किया था। इस रिपोर्ट पर विवाद होने की वजह से सुप्रीम कोर्ट ने बांठिया आयोग के पहले की स्थिति कायम रखी है। इससे ओबीसी को 27 प्रतिशत राजनीतिक आरक्षण मिला। जब यही आदेश अभी देना था तो पौने 3 वर्ष स्थगिती क्यों दी गई? याचिकाकर्ताओं ने दलील दी थी कि बांठिया रिपोर्ट की वजह से ओबीसी की 34,000 आरक्षित सीटें कम हो जातीं। अब यह सभी सीटें ओबीसी के लिए आरक्षित होने पर भी सुप्रीम कोर्ट के अंतिम फैसले के अधीन रहेंगी। इस तरह ओबीसी आरक्षण से चुने जानेवाले उम्मीदवारों पर अनिश्चितता की तलवार लटकती रहेगी।
यह मुद्दा भी कायम है कि प्रभाग रचना का अधिकार किसे है? चुनाव अटक जाने से राज्य की सभी 29 महापालिकाओं, 200 से ज्यादा न्यायपालिकाओं, 2 छोड़कर सभी जिला परिषदों तथा लगभग 100 पंचायतों में पिछले 3 से 5 वर्षों से प्रशासक राज चल रहा है। जनप्रतिनिधि नहीं होने से जनता की समस्याओं का निदान नहीं हो पा रहा है। 4 माह में चुनाव प्रक्रिया पूरी करने का सुप्रीम कोर्ट का आदेश है लेकिन लगभग 35,000 प्रभागों का चुनाव कराना क्या राज्य चुनाव आयोग के लिए संभव हो पाएगा?
लेख-चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा