आज का निशानेबाज (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज, रास्ते हैं तो फासले हैं, फासले हैं तो हौसले हैं, हौसले हैं तो मंजिलें हैं. जिसका दृढ़ निश्चय है वह हर हालत में मंजिल पर पहुंचकर रहता है.’ हमने कहा, ‘आप किसी के साहस भरे सफर या एडवेंचर को लेकर इतनी भूमिका बांध रहे हैं. वह कौन सा बंदा है जो तमाम मुश्किलों के बावजूद अपनी मंजिल पर पहुंचा?’ पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज, समर्थ महांगड़े नामक युवक पंचगनी हिल स्टेशन के पहाड़ी शिखर पर बने हैरिसन फॉली व्यूपाइंट पर गन्ने का रस निकालकर पर्यटकों को पिलाने का काम करता है।
वह बीकॉम फर्स्ट ईयर का छात्र भी है. उसे पता चला कि पहले स्थगित की गई उसकी परीक्षा आज ही ली जाने वाली है परीक्षा केंद्र 5 किलोमीटर दूर पहाड़ी के नीचे पसरनी गांव में था. भारी ट्रैफिक में वहां तक पहुंचने में उसे बहुत समय लगता. टाइम बीता जा रहा था. समर्थ अपना पेपर मिस करना नहीं चाहता था. उसने वहां मौजूदा पैराग्लाइडिंग प्रशिक्षक से निवेदन किया कि भाऊ मुझे 10 मिनिट में एग्जाम सेंटर पहुंचना है. क्या तुम मुझे पहुंचा सकोगे? इस पर प्रशिक्षक ने डांटा कि तुम्हें परीक्षा की तारीख भी याद नहीं रहती चलो अब पट्टा बांधो और कसकर पकड़े रहना।
दोनों पैराग्लाइडर से लटककर पहाड़ की चोटी से कूद पड़े और हवा में मंडराने लगे. प्रशिक्षक ने स्कूल के मैदान पर पैराग्लाइडर उतारा और समर्थ परीक्षा हाल जा पहुंचा तब प्रश्नपत्र बांटे जा रहे थे. इस दौरान समर्थ का एक दोस्त उसके घर जाकर एडमिशन कार्ड ले आया था. अपने इस साहसिक अभियान की बदौलत वह परीक्षा दे पाने में सफल हुआ।’
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हमने कहा, ‘इंसान का विलपावर या प्रबल इच्छाशक्ति उसे सफलता की मंजिल तक पहुंचाती है. कभी भी हतोत्साहित होकर हार मानने की बजाय प्रयत्न करके देखना चाहिए. सफलता किसी निठल्ले को नहीं, बल्कि उद्यमी को मिलती है. स्वामी विवेकानंद ने कहा था- स्टाप नॉट टिल दि गोल इज रीच्ड! मंजिल मिलने तक बिल्कुल भी मत रुकना।’
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा