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नवभारत डेस्क: पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, चुनाव में उम्मीदवारों की लड़ने की तैयारी है। कौन जीतेगा, यह बताने की ज्योतिषियों की बारी है। सच पूछा जाए तो हर प्रत्याशी की दुनिया न्यारी है। किसी की तकदीर में कांटे तो कहीं फूलों की क्यारी है।’’
हमने कहा, ‘‘व्यर्थ की तुकबंदी मत कीजिए। ज्योतिषियों से पूछेंगे तो बताएंगे कि किसी प्रत्याशी का शनि वक्री है तो किसी का मंगल भारी है। वे उम्मीदवार को चुनाव क्षेत्र के अलावा पीपल के वृक्ष के फेरे मारने की भी सलाह देंगे। ऐसे समय भविष्य वक्ताओं का धंधा खूब चमकता है। दक्षिणा में मोटी रकम मिली तो वे उम्मीदवार को उम्मीदों के झूले पर झुला सकते हैं। कह सकते हैं कि तुम्हारा रवि प्रबल और मंगल बलवान है तुम्हारा जो प्रतिद्वंद्वी इतना ताता-थैया कर रहा है, उसकी कुंडली में शनि का अढ़ैया है।’’
पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, कुछ लोगों की राय है कि चुनाव भाग्य के अनुसार नहीं, बल्कि धनशक्ति से लड़े जाते हैं। लोकतंत्र धनी लोगों का, धनी लोगों के लिए, धनी लोगों द्वारा संचालित होता है। अधिकांश विधायक, सांसद, मंत्री करोड़ों की संपत्ति वाले होते है। जैसे पक्षी को दाना डालकर फंसाया जाता है, ऐसे ही गरीबों को मुफ्तखोरी की घोषणाओं में उलझाया जाता है। चूहा पकड़ने के लिए भी तो चूहादानी में कोई मीठी चीज रखी जाती है। चुनाव प्रचार के दौर में चुपचाप नकद रकम भी बांटी जाती है। ऐसी कुछ गाड़ियां पकड़ी भी जाती हैं जिनसे नोटों के बंडल जब्त किए जाते हैं।’’
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हमने कहा, ‘‘चुनाव लड़ना टुटपुंजियों का खेल नहीं है। लोकतंत्र के इस उत्सव में धनवर्षा होना स्वाभाविक है। नेताओं की बड़ी रैली के पीछे पैसों की थैली का कमाल होता है। किराए की भीड़ को बसों, ट्रकों, टेम्पो में भरकर लाया जाता है। लोकप्रियता नोटों के बल पर खरीदी जाती है। लोग किसी रैली या जनसभा में मुफ्त में घंटों नहीं बैठते। देश में ऐसे बेरोजगारों की बड़ी भीड़ है जिन्हें किसी फैक्टरी या ऑफिस में नहीं जाना है। उन्हें रैली में आसानी से लाया जा सकता है। रोजंदारी मजदूर को भी उसकी रोजी का पैसा दे दो तो आकर सभा में बैठ जाएगा।’’
पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, लोकतंत्र की सफलता के लिए यह सब बहुत जरूरी है। पार्टी टिकट हासिल करने से लेकर चुनाव जीतने तक उम्मीदवार को बहुत पापड़ बेलने पड़ते हैं। चुनाव एक अनुष्ठान है जिससे लोकतंत्र की शान है।’’
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी द्वारा