
राज्यों में SIR का बड़ा असर विपक्ष को लगता उससे डर (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘निशानेबाज, हमें ‘सर’ से बड़ा डर लग रहा है। सर के प दबाव की वजह से देश में कितने ही बीएलओ की जान चली गई है। सर से कोई कैसे बचे ? वह किसी भी राज्य में टपक पड़ता है। ‘ हमने कहा, ‘जब आप स्कूल में पढ़ते थे तब बच्चे अपने टीचर यानी ‘सर’ से डरा करते थे क्योंकि होमवर्क नहीं करने पर वह पनिशमेंट देता था। 40-50 साल पहले सर की छड़ी और उनके गुस्से से विद्यार्थी कांपते थे। अब भी कुछ लोग अपने खडूस बॉस से डरते हैं जिसे वह ‘सर’ कहते हैं। ऐसे सर का हुक्म नहीं माना तो समझो नौकरी गई। सर का असर जबरदस्त होता है। इसलिए कभी बेसर-पैर की बात मत कीजिए। कहावत याद रखिए- सर बड़ा सरदार की, पैर बड़ा गंवार का ! कुछ महत्वपूर्ण बातें सर के ऊपर से गुजर जाती हैं इसलिए हमेशा एकाग्र व सतर्क रहिए। सर जो भी कहें, पूरे ध्यान से सुनिए। ‘
पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज, आप सर का मतलब नहीं समझ रहे हैं। पुराने बादशाह किसी पर खफा होते ही आदेश देते थे- सैनिकों, इस गुस्ताख का सर कलम कर दो! इस समय सर का अर्थ है वोटरलिस्ट से बोगस मतदाताओं का नाम काटना ! इसे स्पेशल इन्टेंसिव रिवीजन कहते हैं। शुद्ध हिंदी में इसे कहेंगे- विशेष गहन पुनरीक्षण। इसमें बूथ स्तरीय अधिकारी या बीएलओ घर-घर पहुंचकर मतदाता सूची से उन लोगों के नाम निकाल देते हैं जो या तो मर चुके हैं या जिनका नाम 2 या अधिक बार सूची में दर्ज है। मतलब डेड व डुप्लीकेट दोनों के नाम हटाए जाते हैं। बिहार विधानसभा चुनाव के पूर्व ऐसे 65 लाख घोस्ट नेम या भूतों के नाम हटाए गए।
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विपक्ष का कहना है कि यह मनमानी है। जानबूझकर उसके समर्थक वोटरों के नाम हटाए गए और एनडीए समर्थकों के नाम जोड़े गए। विपक्ष इसे चुनाव आयोग और बीजेपी की मिलीभगत बताता है और कहता है कि घुसपैठिया बताकर मतदाताओं के नाम काटे जा रहे हैं। ‘ हमने कहा, ‘सर कहो या सिर, सारी अक्ल उसी में रहती है। चुनाव जीतने के लिए इसी अक्ल का इस्तेमाल किया जाता है। जहां है सर, वहां बीजेपी का असर। ‘
लेख-चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा






