समाज सहयोग से सुगम बनी संघ शताब्दी यात्रा (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्य को अभी सौ वर्ष पूर्ण हो रहे हैं।इस सौ वर्ष की यात्रा में कई लोग सहयोगी और सहभागी रहे हैं।यह यात्रा परिश्रम पूर्ण और कुछ संकटों से अवश्य घिरी रही, परंतु सामान्य जनों का समर्थन उसका सुखद पक्ष रहा।आज जब शताब्दी वर्ष में सोचते हैं तो ऐसे कई प्रसंग और लोगों का स्मरण आता है, जिन्होंने इस यात्रा की सफलता के लिए स्वयं सब कुछ समर्पित कर दिया।प्रारंभिक काल के वे युवा कार्यकर्ता एक योद्धा की तरह देश प्रेम से ओत-प्रोत होकर संघ कार्य हेतु देशभर में निकल पड़े।अप्पाजी जोशी जैसे गृहस्थ कार्यकर्ता हों या प्रचारक स्वरूप में दादाराव परमार्थ, बालासाहब व भाऊराव देवरस बंधु, यादवराव जोशी, एकनाथ रानडे आदि लोग डॉक्टर हेडगेवार के सान्निध्य में आकर संघ कार्य को राष्ट्र सेवा का जीवनव्रत मानकर जीवन पर्यन्त चलते रहे।
समाज के समर्थन से आगे बढ़ता गया कार्य संघ का कार्य लगातार समाज के समर्थन से ही आगे बढ़ता गया।संघ कार्य सामान्य जन की भावनाओं के अनुरूप होने के कारण शनैः शनैः इस कार्य की स्वीकार्यता समाज में बढ़ती चली गई।स्वामी विवेकानंद से एक बार उनके विदेश प्रवास में यह पूछा गया कि आपके देश में तो अधिकतम लोग अनपढ़ हैं, अंग्रेज़ी तो जानते ही नहीं हैं, तो आपकी बड़ी बड़ी बातें भारत के लोगों तक कैसे पहुँचेगी? उन्होंने कहा कि जैसे चीटियों को शक्कर का पता लगाने के लिए अंग्रेजी सीखने की ज़रूरत नहीं है, वैसे ही मेरे भारत के लोग अपने आध्यात्मिक ज्ञान के चलते किसी भी कोने में चल रहे सात्विक कार्य को तुरंत समझ जाते हैं व वहीं वो चुपचाप पहुँच जाते हैं।इसलिए वे मेरी बात समझ जाएंगे।यह बात सत्य सिद्ध हुई।वैसे ही संघ के इस सात्विक कार्य को धीरे क्यों न हो, सामान्य जन से स्वीकार्यता व समर्थन लगातार मिल रहा है।
महिलाएं भी अग्रसर संघ कार्य के प्रारंभ से ही संपर्कित व नये-नये सामान्य परिवारों द्वारा संघ कार्यकर्ताओं को आशीर्वाद व आश्रय प्राप्त होता रहा।स्वयंसेवकों के परिवार ही संघ कार्य संचालन के केंद्र रहे।सभी माता-भगिनियों के सहयोग से ही संघ कार्य को पूर्णता प्राप्त हुई।दत्तोपंत ठेंगड़ी या यशवंतराव केलकर, बालासाहेब देशपांडे तथा एकनाथ रानडे, दीनदयाल उपाध्याय या दादासाहेब आप्टे जैसे लोगों ने संघ प्रेरणा से समाज जीवन के विविध क्षेत्रों में संगठनों को खड़ा करने में अहम भूमिका निभाई।ये सभी संगठन वर्तमान समय में व्यापक विस्तार के साथ-साथ उन क्षेत्रों में सकारात्मक बदलाव लाने में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं।समाज की बहनों के मध्य इसी राष्ट्र कार्य हेतु राष्ट्र सेविका समिति के माध्यम से मौसी केलकर से लेकर प्रमिलाताई मेढ़े जैसी मातृसमान हस्तियों की भूमिका इस यात्रा में अत्यंत महत्वपूर्ण रही है।
राष्ट्रीय हित के कई विषयों को उठाया आरएसएस ने :
संघ द्वारा समय-समय पर राष्ट्रीय हित के कई विषयों को उठाया गया।उन सभी को समाज के विभिन्न लोगों का समर्थन प्राप्त हुआ, जिनमें कई बार सार्वजनिक रूप से विरोधी दिखने वाले लोग भी शामिल रहे।संघ का यह भी प्रयास रहा कि व्यापक हिन्दू हित के मुद्दों पर सभी का सहयोग प्राप्त किया जाए।राष्ट्र की एकात्मता, सुरक्षा, सामाजिक सौहार्द तथा लोकतंत्र एवं धर्म-संस्कृति की रक्षा के कार्य में असंख्य स्वयंसेवकों ने अवर्णनीय कष्ट का सामना किया और सैकड़ों का बलिदान भी हुआ।इन सबमें समाज के संबल का हाथ हमेशा रहा है।
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हिन्दू शास्त्रों में अस्पृश्यता का कोई स्थान नहीं है, यह पुनर्स्थापित करने के उद्देश्य से गुरूजी गोलवलकर की पहल पर उडुपी में आयोजित विश्व हिन्दू सम्मेलन में पूज्य धर्माचार्यों सहित सभी संतों-महंतों का आशीर्वाद व उपस्थिति रही।जैसे प्रयाग सम्मेलन में न हिन्दुः पतितो भवेत (कोई हिन्दू पतित नहीं हो सकता) का प्रस्ताव स्वीकार हुआ था।भविष्य में राष्ट्र की सेवा में समाज के सभी लोगों के सहयोग एवं सहभागिता के लिए संघ स्वयंसेवक शताब्दी वर्ष में घर-घर संपर्क के द्वारा विशेष प्रयास करेंगे।देशभर में बड़े शहरों से लेकर सुदूर गाँवों के सभी जगहों तक तथा समाज के सभी वर्गों तक पहुँचने का प्रमुख लक्ष्य रहेगा।सज्जन शक्ति के समन्वित प्रयासों द्वारा राष्ट्र के सर्वांगीण विकास की आगामी यात्रा सुगम एवं सफल होगी.
लेख- दत्तात्रेय होसबाले सरकार्यवाह, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ