केंद्र सरकार की जिम्मेदारी मणिपुर (सौ.-डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: इतिहास में 11वीं बार मणिपुर में राष्ट्रपति शासन इ लागू किया गया है. इतने महीनों से जातीय हिंसा व अराजकता चलने के बाद भी केंद्र सरकार ठंडा रुख अपनाए हुए थी. विपक्ष के भारी दबाव का भी उस पर असर नहीं पड़ रहा था. जब सत्तारूढ़ बीजेपी में भी सुगबुगाहट बढ़ने लगी तो अत्यंत विलंब से मुख्यमंत्री एन बिरेनसिंह को इस्तीफा देना पड़ा। मैतेई और कुकी समुदायों के बीच खूनी संघर्ष और आगजनी से 230 से अधिक लोग मारे गए तथा हजारों बेघर हो गए. राज्य व केंद्र सरकार कानून- व्यवस्था बनाए रखने में बुरी तरह विफल रहीं।
संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत विधानसभा अनिश्चितकाल के लिए निलंबित कर दी गई. बुनियादी समस्या का हल निकालने के लिए आखिर क्या किया गया ? मणिपुर के बीजेपी विधायक बिरेनसिंह के उत्तराधिकारी के नाम पर सहमत नहीं हो पाए इसलिए राष्ट्रपति शासन लगाना अपरिहार्य हो गया. केंद्र सरकार भी शायद यह मानकर चल रही है कि समय के साथ स्थितियां काबू में आ जाएंगी. मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए बिरेनसिंह ने राज्य के अधिकारियों को जिस तरह के निर्देश दिए वह भेदभावपूर्ण थे।
सुप्रीम कोर्ट इसकी जांच पड़ताल कर रहा है इसे देखते हुए केंद्र ने राष्ट्रपति शासन लगा दिया. इसके पहले मणिपुर में 2001 से 2002 तक 277 दिनों के लिए राष्ट्रपति शासन लगाया गया था. राज्य में जातीय संघर्ष की जड़ें बहुत गहरी हैं जिसके लिए दोनों पक्षों के बीच सघन व रचनात्मक वार्ता जरूरी है. प्रशासकीय मरहमपट्टी से समस्या हल होने वाली नहीं है. विपक्ष ने कहा है कि केंद्र सरकार जबाबदारी टालने में लगी है. मणिपुर में शीघ्र ही चुनाव कराए जाने चाहिए. कुकी नेताओं ने इस सुझाव का स्वागत किया है लेकिन वे नहीं मानते कि इससे क्षेत्र में स्थायी शांति स्थापित होगी. मुद्दा यह है कि क्या राष्ट्रपति शासन के दौरान राज्य में सुशासन लाया जाएगा अथवा यह समस्या को टालने की दिशा में उठाया गया कदम है।
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इस दौरान बीजेपी अपना प्रभाव जमाने और मुख्यमंत्री के रूप में एक ऐसा चेहरा खोजने का प्रयास करेगी जो प्रशासन पर पकड़ रखे. केंद्र सरकार से उम्मीद है। कि वह राज्य को अनिश्चितता के भंवर से बाहर निकालकर वहां शांति स्थापना का पुरजोर प्रयास करे. मणिपुर की जनता भी लगातार हिंसा, खूनखराबे और आपसी अविश्वास से तंग आ चुकी है. वहां प्रशासन ठप रहने से तरक्की रुकी हुई है और दैनिक जीवन अस्तव्यस्त हो चुका है. मणिपुर धधकता रहा और केंद्र ने वहां की समस्याओं की लगातार अनदेखी की. अब राष्ट्रपति शासन लगाने के बाद मणिपुर की पूरी जिम्मेदारी केंद्र की है कि वह व्यवस्था को पटरी पर लाए।
लेख-चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा