मोबाइल पर अफवाहों का जाल (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘आज ऐसे लोगों की पीढ़ी देखी जा रही है जिनसे किसी खबर की चर्चा करो तो तपाक से कहते हैं कि हमें सब मालूम है, मोबाइल पर देख लिया है! इन लोगों को अखबार पढ़ने की रुचि या धैर्य नहीं है। वह खुद को महाज्ञानी समझते हैं और मोबाइल की फेक न्यूज को सच मान लेते हैं। उन्हें अफवाह और सच्चाई का फर्क समझ में नहीं आता। ये लोग गूगल गुरू के चेले होते हैं। इस बारे में आपकी क्या राय है?’
हमने कहा, ‘मोबाइल कभी भी समाचार पत्र या प्रिंट मीडिया का विकल्प नहीं हो सकता। ऐसे लोगों को समझाइए कि आईएएस की परीक्षा पास करनेवालों ने अपनी सफलता का श्रेय नियमित रूप से अखबार पढ़ने की आदत को दिया है। वहीं करेंट अफेयर्स या समसामयिक हलचलों की सही जानकारी मिलती है। इसके अलावा स्थानीय, प्रांतीय, राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय समाचार, व्यापार और खेल जगत की खबरें अखबार देता है। समाचार पत्र का ओपीनियन पेज अग्रलेख, लेख तथा व्यंग्यात्मक टिप्पणी से ओतप्रोत रहता है। मैगजीन या फीचर पेज मनोरंजन के साथ तकनीक विज्ञान, धर्म, मौसम, पर्यावरण संबंधी सूचना के साथ रोचक व उपयोगी पठनीय सामग्री प्रदान करते हैं।’
पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज, हमें पता है कि पत्रकार से लेकर धोबी तक अपनी गाड़ी पर ‘प्रेस’ लिखवाते हैं। मीडिया पहले सशक्त था लेकिन अब भक्त बनता जा रहा है जो किसी खास नेता की आरती उतारता है।’ हमने कहा, ‘निष्पक्ष पत्रकारिता एक धर्म है जिसे निभानेवाले अखबारों की कद्र कीजिए। गाजा जैसे युद्ध क्षेत्रों में कितने ही पत्रकार अपना कर्तव्य निभाते हुए शहीद हुए। याद कीजिए कि लोकमान्य तिलक ने अंग्रेजी में ‘मराठा’ और मराठी में ‘केसरी’ नामक अखबार निकाले थे। जवाहरलाल नेहरू ने नेशनल हेराल्ड और कौमी आवाज, डा.आंबेडकर ने मूक नायक और बहिष्कृत भारत नामक अखबार निकाले थे। आज भी प्रिंट मीडिया को इलेक्ट्रानिक मीडिया से अधिक भरोसेमंद माना जाता है।
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अखबार या उसकी कतरन आप सहेजकर रख सकते हैं। टीवी या मोबाइल की खबर आपकी नजरों से ओझल हो जाती है। टीवी चैनल एक ही खबर को सुबह से शाम तक घिसते रहते हैं जबकि अखबार में विविधता रहती है। इसलिए उस अखबार पर विश्वास कीजिए जो सदैव निष्पक्ष रूप से अपने पाठकों के साथ रहा है और आगे भी रहेगा।’
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा