आईआईटी में कम प्लेसमेंट से चिंता (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: उच्च शिक्षा पर संसद की स्थायी समिति की रिपोर्ट में आईआईटी के प्लेसमेंट रेट में असामान्य रूप से आई गिरावट पर चिंता व्यक्त की गई. देश के 23 आईआईटी में शैक्षणिक सत्र 2021-22 व 2023-24 के दौरान प्लेसमेंट में 10 प्रतिशत से अधिक कमी देखी गई. वहां से स्नातक हुए छात्रों को नौकरी नहीं मिल पाना उनकी उम्मीदों पर पानी फेर देता है. समिति के अनुसार प्लेसमेंट या नौकरी के लिए चयन बाजार की ताकतों पर निर्भर है।
समिति ने सिफारिश की कि आईआईटी के विभागों को अपने स्नातकों की रोजगार योग्यता बढ़ाने की दिशा में कदम उठाने चाहिए।बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के आईआईटी को छोड़कर 23 आईआईटी में प्लेसमेंट गिरावट आई। धारवाड़ आईआईटी में प्लेसमेंट 90.2 प्रतिशत से घटकर 65.5 प्रतिशत रह गया, केवल जोधपुर, पटना और गोवा के आईआईटी में 90 प्रतिशत प्लेसमेंट देखा गया। कोविड का समय छोड़ दिया जाए तो प्रमुख आईआईटी के सम्मुख कभी ऐसी विपरीत स्थिति नहीं देखी गई।
समिति ने इसकी वजह बताते हुए कहा कि कुछ छात्र उच्च शिक्षा जारी रखना चाहते हैं तो कुछ स्टार्टअप खोल लेते हैं। कुछ ऐसे भी छात्र है जो आईआईटी से निकल कर गैर तकनीकी क्षेत्र जैसे कि सिविल सर्विस में जाना चाहते हैं। आश्चर्य इस बात का है कि, देश की अर्थव्यवस्था का विस्तारीकरण होने के बावजूद जॉब मार्केट में मांग की कमी देखी जा रही है। आईआईटी के स्नातक नौकरी के लिए सर्वाधिक योग्य माने जाते हैं फिर भी ऐसा हो रहा है। कोरोना काल बीत जाने के बाद 2021-22 में प्लेसमेंट की स्थिति में सुधार देखा गया लेकिन फिर इसके बाद प्लेसमेंट में गिरावट आती चली गई।
वैश्विक मंदी की वजह से अब सैलरी पैकेज कम हो गए हैं. कुछ आईआईटी समय की मांग देखते हुए अपने पाठ्यक्रम को नया रूप दे रहे हैं ताकि प्लेसमेंट को आकर्षित किया जा सके. यदि आईआईटी जैसे उच्चस्तरीय संस्थानों में प्लेसमेंट का यह हाल है तो अन्य कालेजों के छात्रों को रोजगार कहां से मिलेगा? वहां तो हालत और भी खराब होगी. संसदीय समिति ने उद्योगों और शिक्षा क्षेत्र के बीच की खाई कम करने के लिए शिक्षा का स्तर सुधारने और फैकल्टी डेवलपमेंट प्रोग्राम की सिफारिश की है।
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आईआईटी में फैकल्टी (शिक्षकों) की कमी पर भी चिंता जताई है।सरकार से शिक्षा का बजट बढ़ाने का आग्रह किया गया है. शिक्षा पर 2014-15 में जीडीपी का 1.07 प्रतिशत खर्च किया जाता था जो 2021-22 में घटकर 1.02 प्रतिशत रह गया. नई शिक्षा नीति के तहत उच्च शिक्षा की फंडिंग बढ़ाने पर समिति ने जोर दिया।
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा