पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, चीन का आक्रामक रवैया देखते हुए हमने तय किया है कि हर चीनी वस्तु का बहिष्कार करेंगे. इसकी शुरुआत हम चीनीमिट्टी से बने कप और मग से कर रहे हैं. अब से कांच या स्टील के गिलास अथवा पेपरकप में चाय पिया करेंगे.’’
हमने कहा, ‘‘चाय भी तो चीन से आई है. प्राचीनकाल में चीन का एक सम्राट बगीचे मे बैठा था, तभी गरम हो रहे पानी में कुछ पत्तियां उड़कर गिर गईं. सम्राट को उस पानी की सुगंध और स्वाद अच्छा लगा. उसे पता चला कि यह चाय की पत्ती का कमाल था. इसके बाद चाय का प्रचलन शुरू हो गया.’’
पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, हमें चीन की चाय से क्या मतलब! हम असम की चाय पीते हैं. चीन अतिक्रमणकारी, हमलावर और दगाबाज देश है. उसकी हर चीज का बहिष्कार करना चाहिए.’’
हमने कहा, ‘‘आप किस-किस चीज का बॉयकाट करेंगे? आप जो मोबाइल या कंप्यूटर इस्तेमाल करते हैं, वह भी चीन निर्मित हो सकता है. बच्चों के खिलौने भी चीन से आते हैं. त्योहार पर जो रंगबिरंगे बल्ब की सीरीज लगाते हैं, वह भी मेड-इन-चाइना होती है. धर्म को न माननेवाले कम्युनिस्ट चीन ने पिछले कई वर्षों से गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियां बनाकर भेजीं, जिनकी भारतीयों ने पूजा की. चीन को बिजनेस का सेन्स है. भारतीयों की जो भी जरूरत होती है, चीन सस्ते में बनाकर बेचता है. चीन में कम वेतन पर वर्कर्स से 12-12 घंटे काम लिया जाता है. क्वालिटी कैसी भी हो लेकिन चीन का माल काफी चीप होता है. गनीमत है कि भारत, चीन की कारों का आयात नहीं कर रहा है, नहीं तो वह भी काफी कम दामों पर मिल सकती हैं. चीन अपने प्रोडक्ट सारी दुनिया में डम्प करना चाहता है. चीन के छाते, रेनकोट, बैग व इलेक्ट्रानिक सामान जगह-जगह मिलेंगे. ई-वाहनों की लिथियम आयन बैटरी भी मेड-इन-चाइना होती है. एलन मस्क ने अपनी इलेक्ट्रिक कार की फैक्टरी चीन में ही डाल रखी है.’’
पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, देशभक्ति का तकाजा है कि चीनी माल का बहिष्कार कर चीन को सबक सिखाया जाए. अब तो हम ‘चाइना टाउन’, ‘चाइना गेट’ या ‘चांदनी चौक टु चाइना’ नाम की फिल्में भी नहीं देखेंगे.’’ हमने कहा, ‘‘तब तो बैंड-बाजे वालों को भी मना कर दीजिए जो बारातियों को नचाने के लिए मेरा नाम चिन-चिन चू गाना बैंड पर बजाते हैं.’’