जम्मू के गांव में रहस्यमय बीमारी (डिजाइन फोटो)
नवभारत डेस्क: जम्मू के राजौरी जिले के गांव बधाल की एक रहस्यमय बीमारी इन दिनों राष्ट्रीय चर्चा का विषय बनी हुई है। इस बीमारी ने अब तक 17 से अधिक जानें ली हैं और करीब 40 लोग अभी भी अस्वस्थ हैं। देश में हर साल कुछ रहस्यमय बीमारियां सीमित क्षेत्रों तक फैलती हैं। कभी मौतों या प्रभावितों की संख्या दहाई के भीतर रहती है, कभी सैकड़ा पार कर जाती है। किसी बीमारी की पहचान हो जाती है और बहुत बार ये रहस्य ही बनी रह जाती हैं। अभी तक अचानक फैलने वाली अज्ञात बीमारियों रोकथाम का कोई सुनिश्चित तंत्र नहीं बन पाया है।
बधाल में कुल 17 मौतों में डेढ़ किलोमीटर के दायरे में रहने वाले, एक प्रीतिभोज में खाना खाने वाले दो परिवार के 7 लोग हैं। 5 बच्चे और दो वयस्क। अन्य मृतकों में कुछ स्त्री पुरुष बुजुर्ग भी शामिल हैं। यह तथ्य बताता है कि संबंधित बीमारी ने हर आयु वर्ग को प्रभावित किया है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट यह कहती है कि उल्टी, तेज़ बुखार, सांस लेने में तकलीफ और बेहोशी के बाद मरने वालों के दिमाग में सूजन पाई गयी।
विशेषज्ञों ने मृतकों के नमूनों में पाए जाने वाले ‘न्यूरोटॉक्सिन’ को इसका दोषी माना। तंत्रिकातंत्र को प्रभावित करने वाला यह रसायन प्राकृतिक जीवों, जैसे बैक्टीरिया, पौधों या जानवरों द्वारा उत्पादित किए जा सकते हैं या सिंथेटिक केमिकल हो सकते हैं। यह रसायन मृतकों के शरीर में कैसे पहुंचा, इसका अभी तक कोई जवाब नहीं मिला। आंध्र प्रदेश में रहस्यमयी बीमारी के चलते जिसमें लोग चक्कर खाकर अचानक बेहोश हो जाते थे, एक समय 400 से ज्यादा लोग अस्पताल में भर्ती हुए थे कुछ मर भी गए। महाराष्ट्र के बुलढाना शहर में अचानक 60 लोग गंजेपन का शिकार हो गए, जिसमें महिलाएं भी शामिल थीं। आजतक इनका रहस्य नहीं खुला।
बेशक हर ऐसी घटना अकारण नहीं होती। उसके पीछे कुछ कारण अवश्य होते हैं। बहुतेरे देशों में बीमारियों के प्रकार और उनके प्रभाव क्षेत्र दर्शाने वाले मानचित्र होते हैं। अपने देश में बीमारियों का कोई न मानचित्र है न ही इस तरह के विश्वसनीय सरकारी आंकड़े, जिससे यह पता लगाया जा सके कि फलां क्षेत्र में इस तरह की बीमारी आशंकित है।
नई बीमारियों के रहस्य से पर्दा उठाने के लिये जीनोम मैपिंग और जीनोम सीक्वेसिंग बड़े काम की चीज है पर इस क्षेत्र में हमारी जो पोल कोरोना के समय खुली, अभी ढंकी नहीं है। ऑरल ऑटोप्सी की प्रक्रिया के तहत मौखिक सर्वेक्षण के जरिये अदृश्य और अज्ञात रोगों का पता लगाने की तो देश में कभी बात ही नहीं हुई।
यह दूर की कौड़ी सही पर चीन, ईरान सरीखी कोई ताकत अपने बायो वेपन या जैविक हथियार का परीक्षण भी इस तरह कर सकती है, क्या हमारे पास इसका शीघ्रता से पता लगाने का कोई मैकनिज्म है? शायद नहीं। डेढ़ महीने से ज्यादा समय के बाद भी रहस्य बनी हुई कथित बीमारी के पीछे किसी अज्ञात बीमारी, खाद्य विषाक्तता, साजिश, अपराध, अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्र, बायोटेरोरिज्म, किसी दुश्मन देश द्वारा जैविक हथियार के परीक्षण जैसे कई कोण शामिल हैं।
स्थानीय और राज्य का पुलिस महकमा अपनी स्पेशल टास्क फोर्स बनाकर इसमें लगा है, वहीं राज्य का स्वास्थ्य मंत्रालय इस पहेली को सुलझाने के लिये पुणे के भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद, दिल्ली के राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र, ग्वालियर के रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन तथा पीजीआई चंडीगढ़ जैसे अनेक राष्ट्रीय संस्थानों की मदद ले रहा है।
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अब गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि स्वास्थ्य, कृषि, रसायन और जल संसाधन मंत्रालय इत्यादि के विशेषज्ञों वाला एक उच्चस्तरीय अंतरमंत्रालीय दल भी जांच कर रहा है। इसका लक्ष्य इस रहस्यमय बीमारी का पता लगाना और भविष्य में ऐसा न हो इसकी व्यवस्था सुझाना है।
किसी को भी इस बीमारी के उद्गम का कोई सूत्र नहीं मिल पाया है और न ही साजिश,षडयंत्र अथवा अपराध का कोई सुराग। संभव है कि जांच दल कोई पता जल्द लगा ले पर यह हर दूसरे बरस आने वाली रहस्यमयी बीमारियों का पता लगाने का स्थायी समाधान नहीं होगा।
लेख- संजय श्रीवास्तव के द्वारा