
(कॉन्सेप्ट फोटो)
Indian Healthcare System: विश्व में डॉक्टरों का मुख्य स्रोत भारत, जर्मनी व चीन हैं और नसों का मुख्य स्रोत फिलीपींस, भारत व पोलैंड हैं। इंटरनेशनल माइग्रेशन आउटलुक रिपोर्ट 2025 में कहा गया है, ओईसीडी सदस्य देशों की स्वास्थ्य व्यवस्थाओं की स्थिरता के लिए प्रवासी डॉक्टर व नर्स निरंतरत्ता के साथ महत्वपूर्ण होते जा रहे हैं। इनकी कमी अस्थायी की बजाय संरचनात्मक है और बिना स्थिर अंतर्राष्ट्रीय भर्ती हालात बदतर हो जायेंगे। जन सेवाओं के दबाव का प्रबंधन करने हेतु प्रभावी प्रवासी नीतियों की जरूरत है।
सबसे ज्यादा भारतीय हेल्थ प्रोफेशनल्स इंग्लैंड, अमेरिका, कनाडा व ऑस्ट्रेलिया में जाते हैं। इस संदर्भ में देश-विशिष्ट डाटा केवल 2021 का उपलब्ध है। इंग्लैंड में भारत-प्रशिक्षित डाॅक्टर 17,250 थे (सभी विदेशी-प्रशिक्षित डॉक्टरों का 23 प्रतिशत), जिससे मालूम होता है कि ब्रिटेन की नेशनल हेल्थ सर्विस को कायम रखने में भारत की महत्वपूर्ण भूमिका है।
अमेरिका व कनाडा में 16,800 व 3,900 भारत-प्रशिक्षित डाॅक्टर थे यानी विदेशी-प्रशिक्षित डॉक्टरों का क्रमशः 8 प्रतिशत व 4 प्रतिशत, ऑस्ट्रेलिया में भारत-प्रशिक्षित डाॅक्टरों की संख्या 6,000 थी यानी सभी विदेशी प्रशिक्षित डाॅक्टरों का 10 प्रतिशत।
इन स्वास्थ्य व्यवस्थाओं में भारत-प्रशिक्षित नर्स भी छायी रहीं कि वह इंग्लैंड में 36,000 (18 प्रतिशत), अमेरिका में 55,000 (5 प्रतिशत), कनाडा में 7,000 (14 प्रतिशत) और ऑस्ट्रेलिया में 8,000 (16 प्रतिशत) थीं।
अतः यह सवाल प्रासंगिक है कि भारतीय डॉक्टरों व नसों की उच्च वैश्विक मांग के बावजूद घरेलू फ्रंट पर उदासी क्यों छायी हुई है? स्पष्ट है कि जो कुछ सरकारी व मेडिकल कॉलेजों में पढ़ाया जा रहा है, उसका फोकस केवल लाभ अर्जित करने (मोटी कैपिटेशन फीस, दिखावटी मेरिट, छाया फैकल्टी, खराब इन्फ्रास्ट्रक्चर) पर नहीं है, जो भारतीयों को अच्छी स्थिति में संभाले हुए है।
इस बात को ओईसीडी रिपोर्ट अधिक स्पष्ट करती है कि सरकार मेडिकल कॉलेज इकोसिस्टम को सुधारने को वरीयता दे और शुरुआत नीट की अखिल भारतीय प्रवेश परीक्षा के विकेन्द्रीकरण से करे, जिसमें पिछले साल 2.4 मिलियन से अधिक छात्र बैठे थे।
डॉक्टरों के पंजीकरण को ही लें। महीनों पहले, एनएमसी ने बताया था कि तमिलनाडु में 1.5 लाख से भी कमा डॉक्टरों का पंजीकरण हुआ था, जबकि तमिलनाडु की राज्य परिषद ने 2 लाख से अधिक डॉक्टरों का पंजीकरणा किया। इसी प्रकार दिल्ली में एनएमसी के लिए 31.5 हजार से कम डॉक्टर थे और 2020 के दिल्ली परिषद डाटा में 72,600 से अधिक डॉक्टर थे।
40 हजार डॉक्टर कहां चले गए, कोई उत्तर नहीं है। अन्य राज्यों का भी यही हाल है और जब शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में इन्फ्रास्ट्रक्चर व स्टाफ के अंतर की तस्वीर सामने आती है तो चिंता अधिक बढ़ जाती है। इन समस्याओं को लटकाये रखने व टूटी हड्डी को बैंड-ऐड से जोड़ने के प्रयास से कुछ नहीं होने जा रहा है। एक टॉप हेल्थकेयर स्थान के रूप में भारत अपनी क्षमता का पूरा उपयोग नहीं कर रहा है।
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दुनिया के मेडिकल पर्यटन बाजार में भारत दसवें नम्बर पर है और 12.3 प्रतिशत के सीएजीआर (कंपाउंड एनुअल ग्रोथ रेट) के साथ 2035 तक उसका यह बाजार 58 बिलियन डॉलर तक पहुंच सकता है। 2024 में 6।4 लाख से भी अधिक मेडिकल पर्यटन वीजा जारी किये गए थे। आधी-अधूरी देखभाल, निजी अस्पतालों पर बढ़ता अविश्वास कि वह अधिक पैसा चार्ज करते हैं।
विदेशी-जन्म प्रोफेशनल्स की संख्या विदेशी-प्रशिक्षित प्रोफेशनल्स से अधिक है, क्योंकि उनमें दूसरी पीढ़ी के प्रवासी भी शामिल हैं, जिन्होंने पलायन के बाद स्थानीय डिग्री हासिल की। ओईसीडी सदस्य देशों में 2021-23 में 6,06,000 विदेशी-प्रशिक्षित डॉक्टर थे, जिनमें से 75,000 (12 प्रतिशत) भारत-प्रशिक्षित थे। विदेशी-प्रशिक्षित 7,33,000 नर्सों में भारत का हिस्सा 17 प्रतिशत या 1,22,000 था।
रिपोर्ट के अनुसार, भारत का दबदबा अनेक कारणों से है। बड़े पैमाने पर मेडिकल शिक्षा प्रदान करना, अंग्रेजी भाषा की जानकारी और ओईसीडी सदस्य देशों द्वारा टारगेट द्विपक्षी भर्तियां। वर्ष 2000 और 2021 के दरमियान विदेशों में कार्य कर रहीं भारत-प्रशिक्षित नर्सों की संख्या में चार गुना से अधिक का इजाफा हुआ, 23,000 से 1,22,000। इसी अवधि में डॉक्टर 56,000 से 99,000 हुए, लेकिन इससे ‘मानव पूंजी : हास’ का प्रश्न तो उठता ही है क्योंकि भारत विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) की हेल्थ वर्कफोर्स सपोर्ट एंड सेफगार्ड्स सूची पर है।
लेख- नौशाबा परवीन के द्वारा






