(डिजाइन फोटो)
नवभारत डेस्क: प्रकृति के विनाशकारी तेवर के सामने इंसान बेबस होकर रह जाता है। मौत कहां से कब टपक पड़ेगी इसका कोई ठिकाना नहीं है। केरल के वायनाड में यही हुआ। लोगों को पता नहीं था कि सोमवार की रात उनके लिए कालरात्रि साबित होगी। चोरल पहाड़ पर रात 2 बजे से सुबह 6 बजे के बीच 3 बार भूस्खलन हुआ। मिट्टी पत्थर, चट्टानें बहाता हुआ सैलाब आया जिससे 4 घंटे में 4 गांव जमींदोज हो गए। चोलिवार नदी की धारा 2 हिस्सों में विभाजित होकर सब कुछ डुबोने लगी।
पहाड़ के नीचे बसे चाय बागान मजदूरों के चारों गांव चूरलमाला, अट्टामाला, नूलपुझा और मुंडक्कई बड़ी बड़ी चट्टानों और मिट्टी के मलबे में दफन हो गए। कुछ ही मिनटों में हजारों घर मलबे के ढेर में बदल गए। मौत सामने थी और बचने का कोई रास्ता नहीं था। लोगों के लिए मानों प्रलय की घड़ी आ गई थी। दूकानें घर टूटकर ध्वस्त हो रहे थे। नदी में कारें बह रही थीं। लोग संभल पाते इसके पहले ही दूसरा भूस्खलन हो गया। पत्थर बरसने लगे और भीषण चीख पुकार मच गई। छत पर चढ़कर भी लोग अपनी जान नहीं बचा पाए।
केरल के वायनाड समेत 5 जिलों में सर्वाधिक भूस्खलन होता है। अरब सागर के गर्म होने से काफी घने बादल बनते हैं जिससे कम समय में बहुत अधिक बारिश होती है। देश के 80 से 85 प्रतिशत भूस्खलन केरल में ही होते हैं। वायनाड पहाड़ी जिला है और पश्चिमी घाट का हिस्सा है। यहां 2100 मीटर तक ऊंचे पहाड़ हैं। भारी बारिश से पहाड़ों की मिट्टी गीली और ढीली हो जाती है और सैलाब मिट्टी व चट्टानों को बहाता हुआ तेजी से नीचे आता है। 2018 के मानसून में भी अत्यधिक बारिश से केरल में 400 से ज्यादा लोगों की जान चली गई थी। भूगर्भ विज्ञान मंत्रालय के मुताबिक 2015 से 2022 तक के भूस्खलनों में से 59।2 केरल में हुए, यह क्षेत्र जमीन खिसकने को लेकर बेहद संवेदनशील है।
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इस भयानक हादसे में 175 से अधिक लोगों की मौत हो गई, 131 से ज्यादा घायल हो गए और 400 से अधिक लोग लापता हैं। मलबे में शवों के टुकड़े मिल रहे है। अनेक लोगों के शव बहकर जलाशय में जा पहुंचे। केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने कहा कि यह राज्य में आई सबसे खराब प्राकृतिक आपदाओं में से एक है। 3800 लोगों को 45 राहत कैंपों में ले जाया गया है। थलसेना के 225 जवान, वायुसेना के 2 हेलीकाप्टर और नेवी के तैराक एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, पुलिस और डॉग स्क्वाड की टीमें लोगों को बचाने और मलबे से निकालने में लगे हैं।
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2018-19 में जो लैंडस्लाइड हुए उनमें से 41 प्रतिशत ढलानों पर बने घरों के आसपास हुए। इसके अलावा सड़क निर्माण और अन्य विकास कार्यों के लिए पहाड़ी ढलानों को काटा जा रहा है जिससे मिट्टी नीचे की ओर खिसक रही है। ये लैटराइट मिट्टी है जो बेहद कमजोर और कटनेवाली होती है। जियोलाजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के अध्ययन के मुताबिक आधे केरल में बारिश के दौरान लैंड स्लाइड का खतरा बना रहता है। वायनाड़ कोझिकोड़, मल्लापुरम, इडुकी, कोट्टायम और पत्थन्मथिट्टा जिले ढलानी इलाकों में हैं। 2019 में इन 8 जिलों में भूस्खलन की 80 घटनाएं हुई थीं और 3 दिन में 120 लोग मारे गए थे। इन इलाकों में सड़क व आवास निर्माण खतरे से खाली नहीं है। वायनाड का 360 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र भूस्खलन के मामले में अतिसंवेदनशील है। लेख चंद्रमोहन द्विवेदी द्वारा