मानसून का आगाज (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘निशानेबाज, झलक दिखाकर मानसून न जाने कहां गायब हो गया।किसान बीज बोने के लिए अधीर हैं, समस्या गंभीर है।जून शुरू हो गया लेकिन मानसून नदारद है।कहीं वह आवारा होकर भटक तो नहीं गया।हमें सुनील दत्त और आशा पारेख पर फिल्माया गया पुरानी फिल्म ‘छाया’ का गीत याद आ रहा है- इतना ना मुझसे तू प्यार बढ़ा कि मैं एक बादल आवारा, जनम-जनम से हूं साथ तेरे, है नाम मेरा जल की धारा!’ हमने कहा, ‘आपको मानसून और प्रीमानसून का तकनीकी फर्क समझना चाहिए। प्रीूमानसून ट्रेलर था और मानसून का पिक्चर अभी बाकी है।इसलिए देखो और प्रतीक्षा करो।इतनी जल्दबाजी भी क्या है!’
पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज, देश की आधी कृषि वर्षा पर निर्भर है।अच्छा मानसून आया तो भरपूर फसल होगी।ग्रामीण रोजगार बढ़ेगा।जलाशय लबालब भर जाएंगे।इससे सिंचाई सुविधा होगी और जल विद्युत केंद्रों को मदद मिलेगी।जमीन में पानी समाने से भूजल के स्तर में वृद्धि होगी।छाते और रेनकोट की बिक्री बढ़ेगी।पानी टपकने से बचने के लिए लोग तिरपाल खरीदेंगे।आप भी रेनवाटर हार्वेस्टिंग पर ध्यान देकर बारिश के पानी को रोक कर अंडरग्राउंड टंकी में जमा कीजिए।महाराष्ट्र में इसे ‘पाणी अडवा पाणी जिरवा’ कहते हैं.’
हमने कहा, ‘मौसम विभाग ने कहा था कि दक्षिण-पश्चिम मानसून समय के 8 दिन पहले केरल में आ गया और वक्त के 16 दिन पहले मुंबई में धमक पड़ा।इससे मुंबई में जनजीवन अस्तव्यस्त हुआ और मेट्रो स्टेशन में पानी भर गया।बंगलुरू में भी ऐसा ही हाल हुआ।अब बता रहे हैं कि वह तो प्रिमानसून था।असली वाला आना बाकी है।आगाज के बाद अंजाम के लिए तैयार रहिए।केबल डालने के लिए खुदी हुई सड़कें और गड्ढे बारिश में खतरा बन जाते हैं।सड़क पर फैली हुई गीली मिट्टी से वाहन फिसलते हैं।
कौनसा वृक्ष कहां गिरेगा इसका ठिकाना नहीं।बरसात का पानी बहने की व्यवस्था नहीं है।नालों की सफाई नहीं हो पाई।मलबा और निर्माण सामग्री सड़कों पर फैली है।चौराहे पानी में डूब जाते हैं।पानी बरसने के बाद समझ नहीं पाता कि कहां से बहे.’’ पड़ोसी ने कहा, निशानेबाज, यह शिकवे-शिकायत छोड़िए।मानसून के स्वागत की तैयारी कीजिए।’
लेख-चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा