
कॉन्सेप्ट फोटो (नवभारत)
नवभारत डिजिटल डेस्क: पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘निशानेबाज मन की बात सुनाने वाले प्रधानमंत्री मोदी की सरकार मनमानी करते हुए महात्मा गांधी के नाम से चलने वाली मनरेगा का नाम बदलने जा रही है। वह उसे पूज्य बापू ग्रामीण रोजगार योजना का नया नाम देगी।’
हमने कहा, ‘इसमें मनमानी की क्या बात है। प्रॉडक्ट वही है सिर्फ लेबल बदल रहा है। इसे नई पैकिंग में स्वीकार कीजिए, जैसे पुराने मंदिर का जीर्णोद्धार होता है वैसे ही पुरानी योजना का पुनरोद्धार हो रहा है। महात्मा गांधी कहने से वह आत्मीयता नहीं झलकती जैसी बापू कहने से दिल को छू जाती है। नेहरू और सरदार पटेल भी महात्मा गांधी को बापू कहकर संबोधित करते थे। इसलिए मोदी सरकार का कदम बिल्कुल सही है। गुजरात में पिता को बापू कहने का रिवाज है। इसलिए मोदी-शाह सही राह दिखा रहे हैं। नई योजना में कामकाज के दिनों की तादाद वर्तमान 100 से बढ़ाकर 125 की जा रही है।’
पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज, हमें तो लगता है कि मोदी सरकार व बीजेपी को गांधी नाम से एलर्जी है। उन्हें यह शब्द सुनते ही राजीव गांधी, सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की याद आती है। इसलिए वह गांधी की बजाय ‘बापू’ कहने के पक्ष में हैं। एमजी की बजाय अब पीबी अर्थात पूज्य बापू कहने की आदत डालिए, पीबी कहने से आपका बीपी या ब्लडप्रेशर नहीं बढ़ जाएगा। बीजेपी की सोच है कि देश कब तक गांधी-नेहरू के नाम की माला जपता रहेगा? समयानुसार परिवर्तन होते रहना चाहिए। नाम ही जपना है तो श्रद्धापूर्वक नमो नमो जपते रहो।’
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हमने कहा, ‘सरकार के पास अधिकार है कि वह कुछ न कुछ नयापन लाए। प्रधानमंत्री ने खुद को प्रधानसेवक कहा। पुराने को छोड़ नया संसद भवन बनवाया। शहरों व सड़कों के पुराने मुगलिया नाम बदल डाले। अब लोग शहरों को प्रयागराज, दीनदयाल, छत्रपति संभाजीनगर, अहिल्यानगर के नए नामों को स्वीकार कर चुके हैं। अहमदाबाद को भी कर्णावती कहने का प्रस्ताव है। इसलिए मानकर चलिए कि परिवर्तन प्रकृति का नियम है। आप इसकी आदत डालिए,’
लेख-चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा






