आज का निशानेबाज (सौ.सोशल मीडिया)
नवभारत डिजिटल डेस्क: पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘निशानेबाज, प्रधानमंत्री मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प की मित्रता से हमें ब्लैक एंड व्हाइट टीवी के जमाने में दूरदर्शन पर सुनाई देने वाला गीत ‘मिले सुर मेरा तुम्हारा’ याद आ गया. दोनों नेताओं ने एक दूसरे को नए सिरे से देखा और परखा.’ हमने कहा, ‘परखना मत, परखने से कोई अपना नहीं रहता! किसी भी आईने में देर तक चेहरा नहीं रहता. ये दुनिया बड़ी जालिम है जिसमें एक चेहरे पर कई चेहरा लगा लेते हैं लोग! इसलिए हमारी सलाह है कि चेहरा क्या देखते हो, दिल में उतर कर देखो ना!’
पड़ोसी ने कहा, ‘ट्रम्प जब टैरिफ बढ़ाकर आयात महंगा कर देते हैं तो उनका सीधा संदेश रहता है- दिल-विल, प्यार-व्यार मैं क्या जानूं रे. जब ट्रम्प व्यापार पर उतर आते हैं तो उनका रवैया सख्त रहता है. वह मेक अमेरिका ग्रेट अगेन के नारे पर निर्वाचित हुए हैं. अपने देश को ग्रेट ही नहीं ग्रेटेस्ट बनाने के लिए उन्होंने कनाडा को यूएस का 51वां राज्य बनने का ऑफर दिया. वह ग्रीनलैंड को भी हथियाना चाहते हैं. डेनमार्क की आपत्ति की उन्हें परवाह नहीं है. गाजा पट्टी को वह रिवेरिया बनाने की सोचते हैं. वहां के लोगों को सऊदी अरब या मिस्र भेजकर पर्यटकों के लिए समुद्री बीच, होटल, कैसिनो, वाटरस्पोर्ट शुरू करना चाहते हैं।
भारत भी चाहे तो मेक इंडिया ग्रेट अगेन का लक्ष्य रखकर अखंड भारत का सपना साकार कर सकता है जो द्वितीय सरसंघचालक गुरूजी गोलवलकर ने देखा था. पाकिस्तान व बांग्लादेश पहले हमारे देश का ही हिस्सा था. अंग्रेजों के शासनकाल में इसे इंडियन एम्पायर ऑफ इंडिया, बर्मा एंड सिलोन कहा जाता था. उसमें बीचो-बीच नागपुर पड़ता था तभी तो यहां जीरो माइल रखा गया. सम्राट कनिष्क के समय चीन तक भारत का साम्राज्य फैला था. महाराजा रणजीतसिंह के समय अफगानिस्तान पर भी अपना आधिपत्य था. महाभारत काल में गांधारी अफगानिस्तान की राजकुमारी थी जिसका धृतराष्ट्र से विवाह हुआ था. तब का गांधार आज के जमाने का कंधार है।’
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हमने कहा, ‘पुतिन यूक्रेन को हड़पने के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं वह खत्म होने का नाम ही नहीं लेती. इजराइल-हमास की लड़ाई से मध्यपूर्व अशांत रहा है. दुनिया के देश युद्ध देते हैं, भारत ने शांति का प्रतीक बुद्ध दिया है. ट्रम्प या पुतिन जैसे बड़े नेताओं की हमें नकल नहीं करनी है. बड़े लोगों से मिलने में हमेशा फासला रखना, जहां दरिया समंदर से मिला, दरिया नहीं रहता।’
लेख-चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा