मोदी की यात्रा के बावजूद मणिपुर की समस्या कायम (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: प्रधानमंत्री मोदी की मणिपुर यात्रा के बावजूद वहां की चुनौतियां कम नहीं हुई हैं। इन समस्याओं का कोई आसान समाधान भी नहीं है। मणिपुर का मैतेई समुदाय राज्य को विभाजित किए जाने के सख्त खिलाफ है जबकि पहाड़ी क्षेत्रों में रहनेवाले कुकी-जो बिल्कुल नहीं चाहते कि मैतेई के साथ रहें। दोनों समुदायों में सशस्त्र गुट हैं। कुकी-जो समुदाय के विधायकों ने जिनमें से 7 बीजेपी के थे, प्रधानमंत्री से मांग की कि कुकी-जो के लिए अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाया जाए और अलग विधानसभा दी जाए। प्रधानमंत्री के मणिपुर प्रवास के पूर्व केंद्र सरकार ने 2 कुकी-जो समूहों के साथ सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशन्स (एसओओ) समझौते को अपडेट किया था।
मणिपुर की क्षेत्रीय अखंडता बनाए रखना भी तय हुआ था। इस दौरान मैतेई संगठन ने सशस्त्र कुकी-जो समूहों को वैधता प्रदान करनेवाले इस समझौते को ठुकरा दिया और कहा कि केंद्र ने हमसे संपर्क नहीं किया। इस तरह के माहौल को देखते हुए मणिपुर में व्यवस्था बनाए रखने की दिशा में धीमी गति से प्रगति होगी। व्यापक संवाद के लिए सभी संबंधित पक्षों को वार्ता की मेज पर आना पड़ेगा। मणिपुर राज्य के ढांचे के भीतर कुकी-जो के पर्वतीय क्षेत्रों को कुछ स्वायत्तता देने पर विचार किया जा सकता है। प्रधानमंत्री ने ऐजवाल को राष्ट्रीय ग्रिड से जोड़नेवाली 8,070 करोड़ रुपए की बैराबी-साइरंग रेल लाइन का उद्घाटन करते हुए मणिपुर के संघर्षरत समुदायों से आपसी संवाद करने को कहा व समझाया कि पहाड़ियों व घाटी के लोगों के बीच भाईचारे का पुल बनना चाहिए। कुकी गुटों ने भी राष्ट्रीय महामार्ग 2 को खोलने का निर्णय लिया। पहले इस तरह के निर्णय विफल हो चुके हैं।
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ऐसा इस बार नहीं होना चाहिए। लोगों को अपने राजनीतिक स्वार्थ की बजाय राज्य की भलाई देखनी चाहिए। केंद्र सरकार चाहती है कि विकास के कदमों से समस्या का हल निकाला जाए लेकिन मणिपुर की समस्या काफी गहरी है। मणिपुर के 10 प्रतिशत भूभाग पर कब्जा रखनेवाले मैतेई दीर्घकाल से अनुसूचित जनजाति (एसटी) में शामिल किए जाने की मांग कर रहे हैं जबकि नगा और कुकी इसका विरोध करते आए हैं। फिलहाल सरकार किसी तरह का फैसला नहीं कर पाई है। प्रधानमंत्री ने अपने मणिपुर प्रवास से पहले हुए समझौतों का उल्लेख कर कहा कि पहाड़ और घाटी के समूहों में तालमेल जरूरी है। उन्होंने शांति की पहल के साथ विकास की राह पर चलने के लिए कहा। प्रधानमंत्री की मरहम लगाने की कोशिश के बाद अब केंद्र को मणिपुर पर अधिक ध्यान देना होगा। जातीय संघर्ष से जो राजनीतिक प्रक्रिया खंडित हो गई है, उसे पुनर्जीवित करना होगा। केंद्र को सभी समूहों से चर्चा जारी रखते हुए न्यायोचित मांगे पूरी करनी होंगी।
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा