
– नरेंद्र शर्मा
केंद्र सरकार दावा करती रही है कि उत्तर-पूर्व के राज्यों में शांति बनी हुई है परंतु यदि ऐसा है तो फिर मणिपुर में हालात इस हद तक कैसे बिगड़ गए और स्थिति बेकाबू हो गई? वहां हिंसा इतनी भड़क उठी कि लीजेंडरी बॉक्सर एमसी मैरी कॉम को कहना पड़ा, ‘मेरा राज्य मणिपुर जल रहा है, कृपया मदद कीजिये… हम शांति के साथ क्यों नहीं रह सकते?’ स्थिति की गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उसे नियंत्रित करने के लिए सेना को बुलाना पड़ा, दंगाईयों को देखते ही गोली मारने का आदेश दिया गया, लगभग 9,000 लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया और पूरे राज्य में मोबाइल व ब्रॉडबैंड इंटरनेट सेवाओं को स्थगित करना पड़ा.
मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बिरेन सिंह का दावा है कि स्थिति को नियंत्रित करने के लिए सभी आवष्यक कदम उठा लिए गए हैं, लेकिन जमीन पर कुछ अलग ही तस्वीर नजर आ रही है. दो दिन की हिंसा में कम से कम 13 व्यक्तियों की जानें जा चुकी हैं. दस जिलों में कर्फ्यू है. जगह जगह पर आग की लपटें दिखायी दे रही हैं और पथराव व गोलीबारी की आवाजें सुनायी दे रही हैं. सेना ने लगभग 5,000 लोगों को चैराचांदपुर से और दो-दो हजार लोगों को क्रमश: इम्फाल व मोरेह से निकालकर सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया है. सेना व असम राइफल्स के 55 कॉलम तैनात किये गए हैं.
राज्य का बहुसंख्यक मैतेई समुदाय लम्बे समय से अपने लिए अनुसूचित जनजाति (एसटी) दर्जे की मांग कर रहा है. हाल ही में मणिपुर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से कहा था कि वह मैतेई समुदाय की मांग की सिफारिश केंद्र को भेजे. इससे राज्य के आदिवासियों को लगने लगा कि उन्हें जो आरक्षण लाभ मिल रहे हैं, उनमें बहुत कमी आ जायेगी. दूसरी ओर बहुसंख्यक मैतेई समुदाय अपने एसटी दावे को मज़बूत करने के लिए इतिहास का हवाला देता है कि वह देशज कबीला है. मैतेई समुदाय मुख्यतः इम्फाल घाटी में रहता है, जोकि राज्य के कुल भूमि क्षेत्र का मात्र दसवां हिस्सा है. अधिकतर आदिवासी समुदाय पहाड़ों में रहते हैं. इस तरह यह घाटी बनाम पहाड़ी टकराव हो जाता है.
मणिपुर का अधिकांश हिस्सा पहाड़ों से घिरा हुआ है और इसके बीच में तश्तरीनुमा उपजाऊ घाटी है. इसके 10 पहाड़ी जिलों में विभिन्न आदिवासी कबीले रहते हैं. राज्य की 28 लाख आबादी (2011 की जनगणना) में से लगभग 40 प्रतिशत पहाड़ों में रहती है. राज्य का बहुसंख्यक मैतेई समुदाय, जिसमें मैतेई पंगल (मुस्लिम) भी शामिल हैं, छोटी लेकिन घनी आबादी वाली घाटी में रहता है, जिसे मैतेई राजाओं के समय से ही सत्ता का केंद्र समझा जाता है. राज्य में 34 मान्यता प्राप्त अनुसूचित जनजातियां हैं, जोकि मुख्यतः नागा व कूकी-चिन या कूकी आदिवासी गुटों के अधीन हैं और इनमें मिजो भी शामिल हैं. मणिपुर में 2016 तक 9 जिले थे, जिनमें 7 अन्य जिले और बना दिए गए. आदिवासी समूहों का आरोप है नये जिले उनके पूर्वजों की भूमि पर कब्जा किये हुए हैं. राज्य सरकार इस आरोप का खंडन करती है.
शेड्यूल्ड ट्राइब डिमांड कमेटी ऑफ मणिपुर (एसटीडीसीएम) 2013 से यह मांग कर रही है कि मैतेई समुदाय को एसटी सूची में शामिल किया जाये. आदिवासी समूह इस मांग का विरोध कर रहे हैं. मैतेई समुदाय का कहना है कि एसटी दर्जा की मांग जॉब्स व शिक्षा में आरक्षण के लिए नहीं है बल्कि अपने पूर्वजों की भूमि, संस्कृति व पहचान सुरक्षित रखने के लिए है. मैतेई समुदाय म्यांमार से अवैध घुसपैठ व ग़ैर-देशज लोगों के बसने को लेकर चिंतित है. मार्च 2023 में मणिपुर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि मैतेई समुदाय को एसटी सूची में शामिल करने के लिए वह चार सप्ताह में आवश्यक कागजात दाखिल करे. वर्तमान असंतोष इसी से भड़का है. 2 मई 2023 को एटीएसयूएम ने मैतेई समुदाय की मांग का विरोध किया और 3 मई को अनेक पहाड़ी जिलों में विरोध प्रदर्शनों का आयोजन किया, जोकि हिंसक हो गए.
मणिपुर में पहाड़ी आदिवासियों और घाटी के मैतेई समुदाय के बीच तनाव कोई नई घटना नहीं है. लेकिन इस समय स्थिति बदतर हुई है, उसका मूल कारण राज्य में बर्मी शरणार्थियों का आना है, जो फरवरी 2021 में सेना द्वारा तख्तापलट के बाद से निरंतर आ रहे हैं; क्योंकि बर्मी जुंटा ने म्यांमार में विद्रोहियों के विरुद्ध अपनी क्रूर कार्यवाही को अभी तक बंद नहीं किया है. जो शरणार्थी आ रहे हैं, उनमें से अधिकतर की रिश्तेदारी मणिपुर में कूकी कबीले से है.
2021 के तख्तापलट के बाद से बर्मी सेना की हरकतों ने उत्तरपूर्वी क्षेत्र में गंभीर समस्याएं खड़ी कर दी हैं. चूंकि दिल्ली के पास कोई शरणार्थी नीति नहीं है, इसलिए ताजे संकट का सामना करना कठिन हो रहा है. उत्तरपूर्व में सर्वांगीण आर्थिक विकास ही तनाव को कम कर सकता है. सरकार को इसी दीर्घकालीन समाधान पर कार्य करना चाहिए.






