हिंदी कदापि नहीं कम्पलसरी (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘निशानेबाज, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने भाषा विवाद की जहरीली बेल को पनपने से रोक दिया और पहली कक्षा से हिंदी पढ़ाने का निर्णय वापस ले लिया।अब हिंदी अनिवार्य या बंधनकारक नहीं रहेगी.’ हमने कहा, ‘हिंदी कभी किसी के लिए अनिवार्य नहीं है।यह प्रेम-बंधन वाली भाषा है।
जब फिल्म ‘संगम’ लगी थी तो हमने कितने ही मराठी भाषियों को गाते हुए सुना था- ये मेरा प्रेमपत्र पढ़कर तुम नाराज ना होना कि तुम मेरी जिंदगी हो, कि तुम मेरी बंदगी हो।हिंदी का बढ़-चढ़ कर विरोध करनेवाले राज ठाकरे ने जनता से यह नहीं कहा कि हिंदी फिल्में मत देखो।हिंदी के गीतों और संवादों का सबसे ज्यादा प्रचार हिंदी फिल्मों ने किया है।इसके अलावा महाराष्ट्र की उपराजधानी नागपुर में आरएसएस का मुख्यालय होने पर भी संघ का सारा कामकाज व गतिविधियां अखिल भारतीय स्तर पर हिंदी में ही चलती हैं।
मनसे का सिर्फ महाराष्ट्र के छोटे से हिस्से में प्रभाव है जबकि आरएसएस अपने सर्वव्यापी स्वरूप में कहता है- संघ शक्ति युगे-युगे! जो नेता हिंदी में भाषण देता है उसका समूचे देश में असर पड़ता है।राज ठाकरे ने स्व।अटलबिहारी वाजपेयी के मंत्रमुग्ध कर देनेवाले भाषण अवश्य सुने होंगे।मोदी के मन की बात भी हिंदी में ही जुबान पर आती है.’ पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज, यदि हिंदी मां है तो मराठी मौसी है।दोनों की लिपी देवनागरी है।हिंदी आपसी बोलचाल व बाजार में प्रचलित भाषा होने से मराठी भाषी खुद ही उसे बोलना सीख जाते हैं।मराठी भाषियों को आपस में हिंदी में वार्तालाप करते देखा जाता है।यह हिंदी की संपर्क भाषा के रूप में सहज स्वीकार्यता है।
राज ठाकरे को जानकारी होनी चाहिए कि मराठी भाषियों ने हिंदी पत्रकारिता और साहित्य में अमूल्य योगदान दिया है।वाराणसी से प्रकाशित ‘आज’ के संपादक बाबूराव विष्णु पराडकर थे।इसी तरह पंडित माधवराव सप्रे ने ‘हिंदी केसरी’ अखबार का संपादन-प्रकाशन किया था।हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार गजानन माधव मुक्तिबोध व अनिल कुमार की मातृभाषा मराठी थी।चंद्रकांत बांदीवडेकर, दामोदर खडसे, केशव फालके जैसे मराठी भाषी साहित्यकारों ने हिंदी की सेवा की है।
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मुंबई, नागपुर, गोंदिया में हिंदी ज्यादा बोली जाती है।कितने ही मराठी भाषी हिंदी अखबार खरीदकर पढ़ते हैं।हिंदी भाषी लोग भी संतों की भाषा मराठी के प्रति आदर रखते हैं।बुनियादी तौर पर दोनों भाषाओं में कोई टकराव नहीं है।हिंदी अनिवार्य करने की जरूरत नहीं, वह अपने आप जुबान पर आ जाती है।बाजीराव और मस्तानी की मोहब्बत मराठी और हिंदी का मेल थी।’