हर किसी के अपने सरोकार (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘निशानेबाज, आज की शहरी संस्कृति में परिवार टूटते-बिखरते जा रहे हैं। केवल हमारे नेता परिवारवाद का अच्छी तरह से ध्यान रख रहे हैं। परिवार है तो समाज है और समाज है तो देश है। हमारी उदारतापूर्ण सोच रही है- वसुधैव कुटुंबकम! समूची पृथ्वी एक परिवार है इसीलिए विदेशी घुसपैठिए भी यहां आकर वोटर बन जाते हैं। मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण या एसआईआर से यह फालतू का कचरा बाहर किया जा रहा है।’
हमने कहा, ‘आपकी अटपटी बातों में कोई तारतम्य नहीं है। पुराने बड़े संयुक्त परिवारों में बच्चे, बूढे, चाचा, ताऊ, उनके बेटे बहुएं मिलाकर 25-30 लोगों का कुटुंब एक छत के नीचे रहा करता था। हर साल-दो साल में नया मेहमान जन्म लेता था और पालना हिला करता था। अतिथि आकर टिक जाते थे और महीने भर से ज्यादा रहा करते थे। कुछ दूर के रिश्तेदार भी परिवार में मुंहबोले रिश्ते से डेरा जमा लेते थे। खेती का अनाज आने से खाने की कमी नहीं पड़ती थी। मेहनती और निकम्मे, कमानेवाले और बेकार सभी तरह के लोग परिवार में खप जाते थे। कृषिप्रधान अर्थव्यवस्था में घर का एक मुखिया रहता था। उसी का आदेश सभी पर चलता था। बड़ा परिवार होने से सुरक्षा गार्ड की जरूरत नहीं पड़ती थी। किसी से झगड़ा हुआ तो पूरा परिवार लाठी-डंडा लेकर उतर आता था।’
पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज, हमने जैमिनी पिक्चर्स और एवीएम की पुरानी ब्लैक एंड व्हाइट फिल्मों में ऐसी बड़ी ज्वाइंट फैमिली देखी है जिसमें लोग किसी गलत फहमी की वजह से लड़-झगड़ कर अलग हो जाते थे लेकिन फिल्म के अंत में सभी एकजुट होकर ग्रुप फोटो खिंचवाते थे।’ हमने कहा, ‘अब परिवार की परिभाषा पूरी तरह बदल गई है। फैमिली का मतलब पति-पत्नी और 2 बच्चे रह गया है। परिवार छोटा और जरूरतें बड़ी हो गई हैं। लोग मजबूत आर्थिक आधार और बेहतर जीवन स्तर हासिल करने के लिए देर से शादी करते हैं।
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बुजुर्गों की दादागिरी का जमाना बीत गया। नई पीढ़ी खूब कमाती और खुलकर खर्च करती है। जो बुजुर्ग बदली हुई परिस्थिति में खुद को एडजस्ट कर लेते हैं, वह सुखी रहते हैं।’ पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज, एडजस्टमेंट कहां नहीं है! प्रधानमंत्री मोदी ने भी तो नीतीशकुमार और चंद्राबाबू नायडू की पार्टियों को अपने गठबंधन में समायोजित किया है ताकि विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के सामने एनडीए अच्छी तरह डांडिया खेल सके। याद रखिए प्रधानमंत्री ने एक बार कहा था कि मेरा कोई अपना परिवार नहीं है, सारे 140 करोड़ भारतवासी मेरा परिवार हैं।
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा