महाराष्ट्र का बजट किसी सर्कस से कम नहीं (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: महाराष्ट्र के वित्तमंत्री अजीत पवार ने राज्य का 2025-26 का संतुलित बजट विधानमंडल में पेश किया लेकिन यह उपक्रम किसी सर्कस से कम नहीं था. शुरूआत में उन्होंने राज्य की आर्थिक स्थिति पर प्रकाश डाला और वर्तमान हालातों की चर्चा की एक वर्ष में क्या किया, इसका लेखा-जोखा प्रस्तुत किया. उन्होंने कोई बात छुपाई नहीं बल्कि स्पष्ट रुप से बताया कि राज्य में राजस्व की कमी 1 प्रतिशत से कम है।
उन्होंने बताया कि राजकोषीय घाटा 1,36,235 करोड़ रुपए का है. शुरू में की गई मीठी बातों से सभी की नजरें वित्तमंत्री पर केंद्रित थीं कि उनके पिटारे से क्या निकलता है. उन्होंने औद्योगिक विकास में महाराष्ट्र अव्वल होने का दावा करते हुए दावोस करार का उल्लेख किया व कहा कि दावोस में राज्य ने 63 कंपनियों के साथ करार हस्ताक्षरित किए। देश के विकास में महाराष्ट्र का असाधारण महत्व है. चीन के साथ युद्ध में हिमालय की मदद के लिए सह्याद्रि दौड़ा था. देश के विकास में महाराष्ट्र का 15.4 प्रतिशत योगदान है. उन्होंने कहा कि मुंबई महानगर पालिका का चुनाव देखते हुए मुंबई ग्रोथ हब सेंटर विकसित किया जा रहा है. बंदरगाह विकास के लिए 484 करोड़ रुपए दिए गए हैं. वास्तव में बंदरगाह को विकसित करना राज्य के लिए जरूरी है जिसके लिए 1,000 करोड़ रुपए की उम्मीद थी किंतु बजट में कम रकम आवंटित की गई. वाढवण प्रकल्प का खर्च 76,220 करोड़ रुपए है।
पवार ने कहा कि महाराष्ट्र की औद्योगिक नीति शीघ्र घोषित की जाएगी. इसमें 50 लाख रोजगार निर्माण करने का उद्देश्य है. गड़चिरोली से नक्सलवाद उन्मूलन का संकल्प केंद्र व महाराष्ट्र सरकार ने किया है. अब गड़चिरोली स्टील हब के रूप में विकसित किया जाएगा. राज्य में बिजली दर अन्य राज्यों की तुलना में काफी अधिक है परंतु वित्तमंत्री ने उसे न जाने किस आधार पर कम बताया. विद्युत खर्च में बचत करने की उनकी बात हवा हवाई प्रतीत होती है।
नवभारत विशेष से जुड़े सभी रोचक आर्टिकल्स पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
आदिवासी विकास के लिए 21,000 करोड़ रुपए का प्रावधान समाधानकारक है. उसकी तुलना में बहुजन कल्याण विकास के लिए 1,526 करोड़ का प्रावधान कम मालूम पड़ता है. इसी तरह दिव्यांग विकास के लिए 1,526 करोड़ की निधि कम प्रतीत होती है. सभी के लिए आवास की बात महत्वपूर्ण लगती है. राज्य में बेघरों की तादाद काफी अधिक है. अल्पसंख्यक विकास के लिए 812 करोड़ रुपए का आवंटन मजाक प्रतीत होता है. ग्रामविकास, सड़क योजना, महामेट्रो विकास के लिए प्रावधान महत्वपूर्ण है. इन सारी योजनाओं के लिए धन कहां से आएगा, यह स्पष्ट नहीं किया गया।
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा