
डीपीडीपी कानून से डेटा कितना सुरक्षित रहेगा (सौ.सोशल मीडिया)
नवभारत डिजिटल डेस्क: जब देश डेटा चोरी के मामले में बस रूस, अमेरिका, ताईवान, फ्रांस और स्पेन से ही पीछे हो, जहां प्रति मिनट 15-20 वैध अकाउंट डेटा चोरी के शिकार बन रहे हों, डेटा असुरक्षा के मामले में देश का नंबर संसार में पांचवां हो, तो यह कानून वाकई जरूरी था। पर्सनल डेटा ही नहीं सरकारी संस्थानों के आंकड़े, जानकारियां भी असुरक्षित हैं। अनगिनत सरकारी वेबसाइटों या विभागों पर कई बार साइबर हमले, दर्जनों बार डेटा लीक की सरकारी स्वीकारोक्ति के बाद इस कानून का प्रभावी होना राहत देने वाला है। सरकारी दावा है कि यह कानून निजी आंकड़ों के प्रबंधन का बेहतर तरीका है, जो लोगों के अधिकारों को मजबूत तो करेगा ही, संगठनों के लिए भी उनकी जिम्मेदारियां तय करेगा।
यह कानून देश की डिजिटल अर्थव्यवस्था के विकास में सहायक बनने के साथ सुनिश्चित करेगा कि गोपनीयता इसकी प्रगति का केंद्र बिंदु बना रहे। कानून के तमाम प्रावधान कठोर हैं, वे डेटा चोरी के मजबूत जवाब लगते हैं, लेकिन सच तो यह है कि इससे जुड़े कई सवाल अब भी अनुत्तरित हैं। सरकार तय करेगी कि कौन सी कंपनी किन देशों में स्थित अपने सर्वरों पर देश के लोगों का पर्सनल डेटा ट्रांसफर कर सकती हैं। राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में कई सरकारी प्रतिष्ठानों, एजेंसियां नियमों से मुक्त हैं। यहां पारदर्शिता का प्रश्न प्रस्तुत होता है।
यदि कुछ मामलों में सरकार ही खुद को कानून से छूट दे दे, तो पारदर्शिता कैसे सुनिश्चित होगी? कानून प्रवर्तन और लोक कल्याण योजना के नाम और दूसरे बहानों से नागरिकों का पर्सनल डेटा लेती हैं। सरकारी राहत वगैरह से वंचित होने अथवा सरकारी भय से नागरिक इनको देने से इनकार नहीं करता। सरकारें व्यक्तिगत आंकड़ों का अपने सियासी हक में इस्तेमाल नहीं करेंगी, इसकी गारंटी कौन देगा?
आमजन का डेटा सरकारी संस्थान से लीक हो जाए तो उसे भी 500 करोड़ का जुर्माना लगेगा, प्रश्न है कि भ्रष्टाचारवश लीक डेटा को सरकार द्वारा ही गठित बोर्ड कैसे पकड़ेगा और जिसका डेटा लीक होगा उसको जुर्माने से क्या मिलेगा? ‘डेटा प्रोटेक्शन बोर्ड ऑफ इंडिया’ की स्वायत्तता पर उठने वाले सवालों का सरकार को संतोषजनक उत्तर देना चाहिए। वह सरकारी अनियमितता पर मूकदर्शक रहेगी तो कानून का क्या मतलब? एक भी सरकारी अनियमितता पर निर्षक्रयता उसकी विश्वसनीयता शून्य कर देगी। इसके लिए कानून को बिना भेदभाव के लागू कराने की राजनीतिक ईमानदारी तथा इच्छाशक्ति, डेटा लीक की घटना पर त्वरित प्रतिक्रिया पर खास ध्यान देने के साथ जनता को डिजिटल सावधानियों के बारे में जागरुक और प्रशिक्षित होना चाहिए।
नागरिकों के बीच डिजिटल साक्षरता को बढ़ाना भी आवश्यक है। कुछ तकनीकी उपाय भी कानून जितने ही आवश्यक हैं। जैसे मल्टी-फैक्टर ऑथेंटिकेशन को अनिवार्य बनाना, मजबूत पासवर्ड नीति लागू करना, सरकारी व निजी क्षेत्रों में डेटा सुरक्षा प्रशिक्षण देना, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, चैटजीपीटी जैसे मॉडल और सोशल मीडिया के तमाम प्लेटफार्म्स ने मिलकर डेटा के दुरुपयोग को बेहद आसान बना दिया है। डीपीडीपी अधिनियम 2025, भारत के लिए डिजिटल शासन के नए युग का उद्घोष है लेकिन इसकी सफलता इस पर निर्भर करेगी कि बोर्ड कितना स्वतंत्र कार्य करता है, सरकार कितनी पारदर्शिता बरतती है और नागरिक कितने जागरूक रहते हैं।
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व्यक्तिगत अधिकारों और वैध डेटा प्रसंस्करण पर समान रूप से बल देने वाला डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन यानी डीपीडीपी कानून 2025 देश में गत नवंबर माह में लागू हो गया। फिलहाल कॉरपोरेट जगत और आमजन दोनों से रिश्ता रखने वाले इस कानून के 18 महीनों में तीन चरणों के जरिए लागू होने की प्रक्रिया जारी है। जब देश में करोड़ों नागरिकों द्वारा निजी आंकड़ों का प्रति क्षण लेन-देन हो रहा हो, ऐसे में निजी आंकड़ों की सुरक्षा, संरक्षा, निजता या उसे संग्रह कर उसके दुरुपयोग के जरिए फायदा उठाने वालों के खिलाफ किसी व्यापक और सक्षम कानून का न होना, बहुत लाचारी जैसी स्थिति थी।
लेख- संजय श्रीवास्तव के द्वारा






