किसानों की कर्जमाफी (सौ.सोशल मीडिया)
नवभारत डिजिटल डेस्क: किसानों की कर्जमाफी की मांग का मुद्दा काफी ज्वलंत हो उठा है। कैबिनेट मंत्री उदय सामंत के इस आश्वासन के बाद प्रहार संगठन के नेता ओमप्रकाश उर्फ बच्चू कडू ने अपना आमरण अनशन खत्म किया कि कर्ज माफी पर फैसला लेने के लिए 15 दिनों के भीतर एक उच्चस्तरीय कमेटी का गठन किया जाएगा। कडू ने चेतावनी दी है कि सरकार ने उनके साथ विश्वासघात किया तो सबसे पहले मंत्री के घर के सामने आंदोलन करेंगे। साथ ही उन्होंने 2 अक्टूबर को मंत्रालय में घुसने का भी अल्टीमेटम दिया।
दूसरी ओर सामाजिक स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्री प्रकाश आबिटकर ने कोल्हापुर में कबूल किया कि ‘लाडकी बहीण’ योजना का अधिक भार सरकार पर है। इस योजना के चलते किसान कर्जमाफी का निर्णय सरकार नहीं ले सकी है। सरकार जो भी निर्णय लेगी वह किसानों के हित में होगा। मंत्री अतुल सावे ने स्पष्ट किया कि हमारे चुनावी घोषणा पत्र में कर्ज माफी का कोई मुद्दा नहीं था। इसके बावजूद सरकार किसानों के लिए विविध योजनाएं चलाकर युद्ध स्तर पर उनकी भलाई के लिए कार्य कर रही है। इसमें जल संधारण योजना शामिल है। इसके बाद अगले 50 वर्षों तक किसानों को सूखे का सामना नहीं करना पड़ेगा।
नदी जोड़ो परियोजना के सर्वेक्षण और 61,000 करोड़ रुपए की जल ग्रिड योजना के लिए निधि उपलब्ध कराई गई है। यह देश की सबसे बड़ी नदी जोड़ो परियोजना है जिससे राज्य की प्यास बुझेगी। इस प्रोजेक्ट की वजह से महाराष्ट्र में बारिश नहीं होने पर भी पानी उपलब्ध होता रहेगा। समुद्र में जा रहा नदियों का पानी सिंचाई के काम आएगा। मंत्री ने जिस नदी जोड़ो योजना का जिक्र किया उसमें वर्षों लगेंगे। मुद्दा यह है कि इस समय किसानों को क्या राहत दी जा सकती है।
विदर्भ और मराठवाडा के किसानों की हालत काफी खराब है क्योंकि पश्चिम महाराष्ट्र की तुलना में इन पिछड़े क्षेत्रों में सिंचाई की बहुत कम सुविधा है। खेती वर्षा पर निर्भर रहती है। कुओं का जलस्तर काफी नीचे जा चुका है। पश्चिम महाराष्ट्र में 2 या 3 एकड़ के छोटे खेत में भी किसान वर्ष में 3 फसलें लेता है क्योंकि वहां सिंचाई सुविधा उपलब्ध है। विदर्भ में 5 एकड़ का खेत होने पर भी बहुत कम उपज हो पाती हैं क्योंकि किसान वर्षा पर निर्भर करता है। किसान कर्ज लौटाने की नीयत रखता है लेकिन परिस्थितियों से विवश हो जाता है। बाजार में फसलों का दाम भी कम मिलता है। बगैर सहायक रोजगार के खेती घाटे का सौदा बन गई है।
लेख-चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा