
वायु प्रदूषण नियंत्रण के लिए अपना मॉडल हो (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: अगर आप दिल्ली के जहरीले वायु प्रदूषण से बचने के लिए देहरादून जाने की योजना बना रहे हैं, तो दो बार सोच लीजिये। अब उत्तराखंड की राजधानी की वायु गुणवत्ता भी चिंताजनक है। देहरादून का भी एक्यूआई लगभग 300 हो गया है। अगले कुछ दिनों के दौरान घने कोहरे की वजह से स्थिति बदतर होने का अनुमान मौसम वैज्ञानिकों को है। यमुना एक्सप्रेस वे पर तो कुछ दिन पहले जीरो विजिबिल्टी की वजह से 19 वाहन आपस में टकराये, भीषण आग लगी और 16 व्यक्ति इस दुर्घटना से बुरी तरह से जलकर मरे।
लाशों की शिनाख्त भी न हो सकी। लखनऊ में भारत व दक्षिण अफ्रीका के बीच चौथा टी-20 मुकाबला खेला जाना था, दर्शक स्टैंड्स में थे, खिलाड़ी अंधेरे में थे और मैच को ‘धुंध’ खा गई। ‘फॉग’ (कोहरा) ‘स्मोग’ (धुंधभरी जहरीली हवा) देश के अधिकतर हिस्से में है। भारत में पीएम 2.5 (खराब या जहरीले वायु प्रदूषण) के कारण सालाना 20 लाख से अधिक समय-पूर्व मौतें होती हैं। चिंताजनक एक्यूआई की वजह से हृदय रोग, स्ट्रोक्स, सांस संबंधी बीमारियां और फेफड़ों के कैंसर में भयावह वृद्धि हो रही है। एक्यूआई जब 300-400 या उससे ऊपर हो जाता है, जैसा कि इस समय दिल्ली के लक्ष्मी नगर, आनंद विहार आदि क्षेत्रों में है, तो हर किसी को प्रभावित करने लगता है, लेकिन गरीबों पर इसका अत्यधिक कुप्रभाव पड़ता है।
भारत में वायु प्रदूषण कम करने के लिए सुझाव दिया जाता है कि चीन का अनुसरण किया जाना चाहिए। चीन ने शहरी वायु प्रदूषण पर जबरदस्त नियंत्रण स्थापित किया है। एक तानाशाह सरकार वह परिवर्तन लागू कर सकती है, जो लोकतंत्र नहीं कर सकता और साथ ही भारत चीन जितना पैसा खर्च करने की स्थिति में भी नहीं है। इसलिए बीजिंग, दिल्ली के लिए मॉडल नहीं हो सकता। हमें अपने ही मॉडल तलाश करने होंगे। ऐसा प्रतीत होता है कि हमारे जनप्रतिनिधियों ने सोच लिया है कि वायु प्रदूषण का कोई हल नहीं है, यह मौसमी समस्या है। हमें बहस नहीं, समाधान चाहिए ताकि दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, अहमदाबाद, देहरादून, छोटे शहर, बड़े शहर, गांव व कस्बे जहरीली हवा से घुटकर मरने से बच जाएं। सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर का अनुमान है कि अकेले दिल्ली में 2023 में वायु प्रदूषण के कारण 17,200 व्यक्तियों की जानें गई थीं।
राष्ट्रीय राजधानी में वायु प्रदूषण हर साल 4.9 लाख स्वस्थ लोगों को बीमार कर देता है। इसलिए ‘स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर रिपोर्ट 2025’ का यह डाटा सही प्रतीत होता है कि भारत में वायु प्रदूषण के कारण हर वर्ष 20 लाख से अधिक लोग अपनी मौत से पहले ही मर जाते हैं। दिल्ली से दो दशक पहले बीजिंग के सिर पर प्रदूषित राजधानी का ताज था और जहरीली हवा हर साल 20 लाख चीनियों की जान ले लेती थी। अमेरिका, इंग्लैंड, चीन व अन्य देशों ने दिखाया है कि वायु प्रदूषण का होना लाजमी नहीं है। उसे नियंत्रित किया जा सकता है। इथोपिया की राजधानी अदीस अबाबा की आबोहवा इतनी साफ व स्वच्छ है कि दमे का मरीज भी खुलकर सांस ले सकता है। अगर बीजिंग में नीला आसमान दिखायी दे सकता है तो दिल्ली में क्यों नहीं? लंदन ने अपनी हवा को 70 प्रतिशत स्वच्छ कर दिया है। लाखों कारें, हजारों बसों से अधिक प्रदूषण फैलाती हैं।
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किसी भी समस्या का समाधान उसकी गंभीरता को समझने के बाद ही निकाला जा सकता है, जिसके लिए ठोस व विश्वसनीय डाटा की आवश्यकता हो सकती है। दिल्ली या मुंबई में वायु प्रदूषण की वास्तविक स्थिति जानने के लिए पर्याप्त निगरानी स्टेशन होने चाहिए और ईमानदारी से रिपोर्टिंग की जानी जाये। पूरे भारत में धूल की वजह से वायु की गुणवत्ता सबसे अधिक प्रभावित होती है। धूल 40 प्रतिशत पीएम 10 और 30 प्रतिशत पीएम 2।5 पार्टिकल्स बनाती है। निर्माण साइट्स को ढकने व पानी दिये जाने को सख्ती से लागू किया जाये। साथ ही शहरों में व उनके आसपास हरियाली बढ़ाना भी जरूरी है।






