वोट चोरी के आरोपों की चुनाव आयोग गंभीरता से जांच करे (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: मतदाता सूची में गड़बड़ी के प्रमाण निरंतर प्रकाश में आ रहे हैं- कहीं एक घर में 250 मतदाता पंजीकृत हैं तो कहीं 10×15 फीट के कमरे में 80 मतदाता रह रहे हैं और वह भी अलग-अलग जातियों व क्षेत्रों के कहीं बड़ी संख्या में मकानों का नंबर शून्य लिखा है, तो कहीं पिता का नाम एफजीएचआई लिखा है या एक ही व्यक्ति को दो फोटो पहचान कार्ड जारी किए हुए हैं, कहीं फॉर्म 6 पर 70 वर्षीय महिला को मतदाता बनाया हुआ है, जबकि इसका संबंध पहली बार के नए मतदाता से है, तो कहीं फोटो ऐसा लगाया हुआ है कि माइक्रोस्कोप से भी दिखायी न दे।
इस किस्म की अनेक त्रुटियां हैं, जिनको त्वरित सुधारने की जरूरत है ताकि मतदाताओं का चुनाव प्रक्रिया में विश्वास बना रहे।लेकिन चुनाव आयोग क्या कर रहा है? वह कहीं वोट बढ़ा देता है, कहीं वोट घटा देता है और सुप्रीम कोर्ट में दायर अपने जवाब में कहता है कि बिहार में मतदाता सूची से बाहर किए गए 65 लाख लोगों की न तो सूची शेयर करेगा और न ही यह बताने के लिए बाध्य है कि उनका नाम किस वजह से सूची से हटाया गया है।यह जानकारी अगर चुनाव आयोग नहीं देगा, तो फिर कौन देगा?
चुनाव आयोग ने अपनी साईट पर जो बिहार की डिजिटल मतदाता सूची अपलोड की थी उसे हटाकर ऐसे फॉर्मेट में सूची अपलोड की है, जिसे पढ़ना व डाउनलोड करना लगभग असंभव है।इससे चुनाव आयोग के इरादों पर शक गहरा ही होता है।विशेषकर इसलिए कि ‘वोट चोरी’ का आरोप लगाते हुए जब विपक्ष के 300 सांसदों ने 11 अगस्त को मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार से मिलने के लिए समय मांगा, तो उन्होंने जगह की तंगी का हवाला देते हुए केवल 30 सांसदों से ही मुलाकात करने को कहा।लेकिन यह भी न हो सका, क्योंकि यह सांसद जब संसद भवन से निर्वाचन सदन की तरफ मार्च करते हुए जा रहे थे, तो पुलिस ने उन्हें हिरासत में ले लिया और दो घंटे बाद छोड़ा क्या मजाक है, देश की राजधानी में इतनी जगह भी नहीं है। ज्ञानेश कुमार 300 सांसदों से एक साथ मुलाकात कर सकें?
लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने दो मुख्य आरोप लगाए हैं।एक, उन्होंने पिछले साल के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव पर ‘मैच फिक्सिंग के आरोप लगाए।दो, उन्होंने 2024 कर्नाटक लोकसभा चुनाव में ‘वोट चोरी’ का आरोप लगाया।कर्नाटक से संबंधित आरोप लगाने से पहले राहुल गांधी ने गहरी पड़ताल की और साक्ष्यों के आधार पर आरोप लगाए।भारत के चुनावी इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ जब ‘ठोस साक्ष्यों’ के साथ आरोप लगाए गए।काफी जद्दोजहद के बाद चुनाव आयोग बेंगलुरु सेंट्रल लोकसभा सीट के महादेवपुरा सेगमेंट की मतदाता सूची राहुल गांधी को देने के लिए तैयार हुआ और वह भी लाखों कागजों पर आधारित, जबकि वह डिजिटल भी दी जा सकती थी।इन कागजों की जांच करने में राहुल गांधी की टीम को लगभग छह माह का समय लगा।
अगर यह डिजिटल फॉर्मेट में दी जाती तो यह काम एक दिन में ही हो जाता।यह भी सोचने का विषय है कि चुनाव आयोग ने डिजिटल फॉर्मेट में सूची देने की बजाय टनभर कागज में क्यों दिए? क्या वह चाहता था कि कोई जांच कर ही न पाए ? अपने अध्ययन का हवाला देते हुए राहुल गांधी ने दावा किया कि बीजेपी ने बेंगलुरु सेंट्रल की सीट 32,707 वोटों से जीती, जबकि उसके पक्ष में 1,00,250 जाली वोट पड़े थे।
ये भी पढ़ें– नवभारत विशेष के लेख पढ़ने के लिए क्लिक करें
लोकतंत्र में ‘फ्री एंड फेयर इलेक्शन’ तभी हो सकते हैं, जब मतदाता सूची पर कोई संदेह न हो और 18 वर्ष से ऊपर के किसी भी भारतीय नागरिक का नाम उसमें से गायब न हो।लेकिन इन आरोपों की जांच करने या मतदाता सूची की कमियों को दूर करने की बजाय चुनाव आयोग राहुल गांधी से लिखित में हस्ताक्षर युक्त शपथ पत्र मांग रहा है और वह भी अपने द्वारा बनाए गए फॉर्मेट में जो कि मतदाता सूची में किसी का नाम जोड़ने या घटाने के लिए दिया जाता है।क्या राहुल गांधी मतदाता सूची में किसी का नाम शामिल करने या निकालने की मांग कर रहे हैं? नहीं।वह तो यह कह रहे हैं कि जिस मतदाता सूची के आधार पर 2024 का लोकसभा चुनाव कराया गया और जिसे चुनाव आयोग ने स्वयं उन्हें दिया उसमें ‘धांधली’ हुई है, जिसकी जांच होनी चाहिए?