अपनी राजनीति का कड़वा सच (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘निशानेबाज, विभिन्न पार्टियों में वंशवाद की राजनीति का बोलबाला है। नेता मुंह में चांदी का चम्मच लेकर पैदा हुआ करते हैं। क्या चांदी महंगी होने की यही वजह है?’ हमने कहा, ‘चांदी तो पूजीपतियों के मित्र नेताओं की सफेद दाढ़ी और मूछों में भी समाई हुई है। भारत में जब ब्रिक्स सम्मेलन हुआ था तो उसके सदस्य देशों के नेताओं को चांदी की थाली और कटोरियों में खाना खिलाया गया था।’
पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज, चांदी या सिल्वर का महत्व हमेशा से रहा है। ब्रिटिश शासनकाल में चांदी की चवन्नी, अठन्नी और रुपये के सिक्के चला करते थे। तब एक लोकगीत था- गंगा किनारे का मैं हूं किसनवा, खेतों में काम करूं सारे-सारे दिनवा, पाऊं चवन्नी चांदी की, जय बोलो महात्मा गांधी की! आज के जमाने में चवन्नी अठन्नी गायब हो गई। रुपया भी स्टेनलेस स्टील का और बहुत छोटे आकार का हो गया है। त्योहार पर लोग जिन चांदी का वर्क चढ़ी मिठाइयों को खाते हैं, वह यह नहीं जानते कि वह चांदी नहीं बल्कि अल्युमीनियम की परत है जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। खिलाड़ी सिल्वर मेडल जीतते हैं तो वह भी नकली चांदी का निकलता है। जब खिलाड़ी कड़की की हालत में मेडल बेचने निकलता है तो सराफे में इसका भंड़ाफोड़ होता है।’
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हमने कहा, ‘पहले कुछ अच्छी फिल्में लगातार 25 सप्ताह चलकर सिल्वर जुबली या रजत जयंती मनाया करती थीं। तब थियेटर में मौजूद दर्शकों को मिठाई बांटी जाती थी। लोग अपनी शादी की 25वीं वर्षगांठ या सिल्वर जुबली बड़े उत्साह से मनाते हैं। तब यदि पत्नी के 2-4 बाल सफेद हो गए तो गाने लगते हैं- सोने जैसा रंग है तेरा, चांदी जैसे बाल, एक तू ही धनवान है गोरी, बाकी सब कंगाल!’ पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज, चांदी की खदान कनाडा, अमेरिका, दक्षिण अमेरिका, मेक्सिको, आस्ट्रेलिया और स्पेन में हैं। पुराने कैमरे में लगनेवाली फिल्म बनाने में सिल्वर नाइट्रेट का इस्तेमाल किया जाता था। अब भी मोबाइल फोन या सेमीकंडक्टर चिप बनाने में चांदी का उपयोग होता है। इसलिए समझ जाइए कि चांदी क्यों इतनी महंगी हो रही है।’
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा