
अभिनय की त्रिवेणी थे ही-मैन धर्मेंद्र (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: एक ऐसा अभिनेता जो एक्शन के अलावा कॉमेडी ही नहीं, संवेदनशील भूमिका भी बखूबी निभा सकता था, उस हरफनमौला का नाम धर्मेंद्र था।फिल्म ‘बंदिनी’ का संवेदनशील डॉक्टर, शोले का दमदार पात्र वीरू, चुपके-चुपके का शुद्ध हिंदी बोलनेवाला नकली ड्राइवर, फिल्म प्रतिज्ञा का पियक्कड़ बहुरुपिया इंस्पेक्टर, सीता और गीता का मदारी ऐसी विविध भूमिकाओं को अत्यंत कुशलता से निभानेवाला महान एक्टर नहीं रहा।कसरती बदनवाले धर्मेंद्र ने हिंदी फिल्मों के चाकलेटी हीरो की छवि तोड़कर अपने लिए मुकाम बनाया।
उनकी पहली फिल्म थी- शोला और शबनम! फिर आई ‘दिल भी तेरा हम भी तेरे’।फिल्म ‘काजल’ में जब काम मिला तो अपनी डॉयलागबाजी के लिए मशहूर राजकुमार ने धर्मेंद्र को देखते ही डायरेक्टर पर फिकरा कसा था- कैसे-कैसे पहलवान उठाकर ले आते हो, ये एक्टिंग क्या जानें! शीघ्र ही धर्मेंद्र ने अपना लोहा मनवा दिया।उन्होंने मीनाकुमारी, माला सिन्हा, रेखा, सायराबानो, आशा पारेख, राखी जैसी अपने समय की टॉप हीरोइनों के साथ काम किया लेकिन उनकी फिल्मी जोड़ी हेमा मालिनी के साथ बनी।जुगनू, सीता और गीता, रजिया सुल्तान, शोले जैसी कितनी ही फिल्मों के बाद हेमा उनकी जीवन संगिनी बनीं।
धर्मेंद्र ने धर्मवीर में जितेंद्र के साथ, मेरा नाम जोकर में राजकपूर के साथ, राम बलराम, दोस्ताना और शोले में अमिताभ बच्चन के साथ अभिनय किया।‘मधुर मिलन’ एक मात्र फिल्म थी जिसमें धर्मेंद्र और दिलीपकुमार साथ नजर आए।धर्मेंद्र ने ‘आई मिलन की बेला’ में निगेटिव रोल किया था।फिल्म ‘सत्यकाम’ में वह आदर्श सिद्धांतवादी युवक बने थे।ब्लैक एंड व्हाइट से रंगीन फिल्मों का लगभग 65 वर्षों का शानदार सफर उन्होंने तय किया।उनकी अंतिम फिल्म ‘रॉकी और रानी’ की प्रेमकहानी थी जिसमें उन्हें उम्र के अंतिम पड़ाव में अपनी पुरानी प्रेमिका (शबाना आजमी) मिल जाती है।इस फिल्म में उन्हें अल्जाइमर का शिकार बताया गया था।कृष्णा शाह निर्मित शालीमार उनकी अंतरराष्ट्रीय फिल्म थी।इसमें रेक्स हैरिसन व जॉन सेक्स जैसे हालीवुड अभिनेता उनके साथ थे।प्रोड्यूसर के रूप में भी धर्मेंद्र ने फिल्में बनाई थीं जिनमें ‘अपने’ का समावेश था।
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शर्टलेस बॉडी का सर्वप्रथम प्रदर्शन धर्मेंद्र ने फूल और पत्थर में किया था।बाद में सलमान खान, टाइगर श्राफ ने यह ट्रेंड अपनाया।धर्मेंद्र की शानदार पर्सनैलिटी, कसरती बदन व एक्शन फिल्मों में सजीव अभिनय की वजह से उन्हें ही-मैन कहा जाने लगा।फिल्म ‘रजिया सुल्तान’ में चेहरे पर काला रंग लगाकर याकूत नामक हब्शी गुलाम का रोल करने में भी उन्होंने संकोच नहीं किया।फिल्म शोले का पानी की टंकी पर चढ़कर उन्होंने जैसा कॉमेडी सीन किया, वह दर्शकों को भुलाए नहीं भूलता।धर्मेंद्र के निधन के साथ प्रभावशाली अभिनय कला का एक अध्याय समाप्त हो गया।
लेख-चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा






