
मनपा चुनाव को लेकर दोनों शिवसेना नेताओं में बहस (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: शिवसेना के दोनों गुटों ने गत सप्ताह पार्टी की 59वीं वर्षगांठ 2 अलग-अलग सम्मेलनों में मनाई और उनके नेताओं ने एक दूसरे के खिलाफ तीखी भाषणबाजी की दोनों के टकराव का मुद्दा इस समय बृहन्मुंबई महापालिका का चुनाव है इस महापालिका पर वर्चस्व की जबरदस्त होड़ इसलिए भी है क्योंकि उसका बजट 74,000 करोड़ रुपए से अधिक का है। यह बजट हिमाचल प्रदेश, त्रिपुरा, मिजोरम, नगालैंड, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मणिपुर व सिक्किम के बजट से बहुत ज्यादा है।
शिवसेना ठाकरे, शिवसेना (शिंदे), मनसे और बीजेपी सभी ने मनपा पर भगवा फहराने का इरादा व्यक्त किया है.शिवसेना के दोनों गुट और बीजेपी प्रयास कर रहे हैं कि मनसे उनके साथ आ जाए,वैसे राज ठाकरे के तीखे भाषणों के बाद भी किसी चुनाव में मनसे को आज तक सफलता नहीं मिली है।किसी भी पार्टी से हाथ मिलाने से कुछ मिलेगा क्या, इसका पता मनसे को इस चुनाव में लग जाएगा। यद्यपि उद्धव और राज ठाकरे के एक साथ आने की चर्चा पिछले कुछ समय से चल रही है और कार्यकर्ताओं में भी इसे लेकर उत्साह है।
शिवसेना के वर्षगांठ समारोह में उद्धव ने राज ठाकरे की न तो कोई आलोचना नहीं की न ताना कसा, यह इन भाइयों के निकट आने का संकेत माना जा रहा है.ऐसा ही मनसे के प्रति प्रेम एकनाथ शिंदे के भाषण में भी दिखाई दिया।बीजेपी ने तो मनसे नेता के साथ फाइव स्टार होटल में चर्चा की.शिवसेना के दोनों गुट एक-दूसरे पर शाब्दिक प्रहार में पीछे नहीं रहे। उद्धव ने कहा कि गद्दारों को सबक सिखाएंगे तो एकनाथ शिंदे ने उद्धव के जख्मों पर नमक छिड़कते हुए कहा कि न तो उनसे पार्टी संभली, न हीं समर्थक, मुंबई में कभी भी राकांपा (अजीत) की घड़ी या शरद पवार की तुरही नहीं चल पाई। शेष महाराष्ट्र में अज भी राकांपा के दोनों गुटों को मनोमिलन को लेकर उम्मीदें की जा रही हैं।
पिछले कुछ वर्षों में सत्ता के लिए जो राजनीतिक उलटफेर हुआ उसमें जनता की कोई भूमिका नहीं थी.मतदाता की जरूरतों और आशा-आकांक्षाओं की ओर कोई ध्यान न देते हुए नेताओं ने अपनी राजनीतिक चाल चली.लोकसभा और विधानसभा के बाद विधान परिषद व राज्यसभा चुनाव नेताओं की छीनाझपटी व अवसरवादिता नजर आई, राजनीति का खोखलापन इसमें नजर आया।अब कुछ ही महीनों में राज्य में स्थानीय निकाय के चुनाव होने वाले हैं.इनमें कार्यकर्ताओं का परिश्रम व जनसंपर्क कसौटी पर होगा। स्थानीय समीकरण भी महत्व रखेगा फिर भी नेताओं की प्रतिष्ठा दांव पर होगी।
इसके बावजूद मुंबई मनपा का चुनाव किन मुद्दों पर लड़ा जाए, इसे लेकर किसी भी पार्टी ने स्पष्ट रूख नहीं दिखाया है।केवल भाषणबाजी व आरोप-प्रत्यारोप करने तथा विचारधारा की दुहाई देने से काम नहीं बनने वाला। बृहन्मुंबई अनेक ज्वलंत समस्याओं और प्रश्नों से जूझ रहा है। जनता चाहती है कि नेता और पार्टियां इस पर ध्यान दें।
लेख-चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा






