
नेताओं की मानसिकता (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘निशानेबाज, चुनाव का मौसम आते ही बगुलाभगत नेताओं की दौड़ ज्योतिषियों की ओर शुरू हो जाती है।वह अपना चुनावी भविष्य जानना चाहते हैं इसलिए कोई हस्तरेखा विशेषज्ञ के पास जाता है तो कोई कुंडली दिखाकर अपनी ग्रहदशा जानना चाहता है।कोई किसी रत्नपारखी के यहां जाकर पूछता है कि कौन सा स्टोन अंगूठी में पहनूं जिससे जीतने के आसार बने।मूंगा पहनूं या मोती जिससे चमके मेरी किस्मत की ज्योति?’
हमने कहा, ‘ज्योतिषी को अपने कार्यालय में यह गीत बजाना चाहिए- इधर तो हाथ ला प्यारे, दिखाऊं दिन में भी तारे, लिखा है क्या लकीरों में, फकीरों से सुन जा रे! उम्मीदवार को आकर्षित करने के लिए मीठी-मीठी बातें करनेवाला मामूली ज्योतिषी भी खुद को राजज्योतिषी बता सकता है।वह प्रत्याशी से कह सकता है- आ जद्भ यहां, तकदीर ने तुझको पुकारा, जान ले कैसे चमकेगा किस्मत का सितारा!’ पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज, घाघ किस्म के ज्योतिषी तगड़ी फीस लेते हैं और अलग-अलग फंडे बताते हैं।
कोई कहता है कि मंगल भारी है, राहू-केतु की दशा चल रही है शनि की वक्रदृष्टि है।पूजा करवानी होगी तो संकट दूर हो जाएगा।प्रतिकूल को अनुकूल बनाना है तो इतनी दक्षिणा दो।हम सब कुछ करवा देते हैं।वह तिलक लगाकर कलाई पर रंगबिरंगा चमकीला कलावा बांध देता है।इससे उम्मीदवार का आत्मविश्वास बढ़ता है और वह अपने समर्थकों को साथ लेकर शुभ मुहूर्त में फार्म भरने निकल पड़ता है.’
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हमने कहा, ‘चुनाव पैसे का खेल बन गया है।माल लगाओ, माल कमाओ! आंख के अंधे और गांठ के पूरे लोग ही चुनाव लड़ सकते हैं।यह छोटे-मोटे लोगों का काम नहीं है।निष्ठावान कार्यकर्ता की जिंदगी दरी बिछाने या कुर्सी लगाने में बीत जाती है लेकिन उसके उम्मीदवार बनने की उम्मीद पूरी नहीं हो पाती।बेमौसम बारिश के समान दूसरी पार्टी से आया दलबदलू टिकट पा जाता है।दबंग लोग लठबंधन वाली दादागिरी से चुनाव जीतते हैं जबकि कुछ को गठबंधन वाली राजनीति फायदा पहुंचाती है।’
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा






