सीबीएसई ने लगाया शुगर बोर्ड (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: सीबीएसई ने एक सार्थक पहल करते हुए देश के अपने 26,000 स्कूलों में अनिवार्य रूप से शुगर बोर्ड लगाने का निर्देश दिया है जिसमें मीठे खाद्य पदार्थों और पेय के विकल्प बताए गए हैं। हर खाद्य में पाई जानेवाली शक्कर की मात्रा और उससे होनेवाले नुकसान के बारे में जानकारी दी गई है। यह सुनिश्चित किया जाएगा कि स्कूल कैंटीन में केवल स्वास्थ्यप्रद खाद्य पदार्थ ही मिलें। यह कदम इसलिए उठाया जा रहा है क्योंकि टाइप-2 डायबिटीज का खतरा अब बच्चों में भी बढ़ गया है। पहले इसे वयस्क लोगों की बीमारी माना जाता था।
चंडीगढ़ स्थित पीजीआईएमईआर के अनुसार भारतीय स्कूली छात्रों में प्री डायबिटीज और डायबिटीज पीड़ितों की तादाद क्रमश: 15.35 प्रतिशत और 0.94 प्रतिशत पाई गई है। है। इतनी कम उम्र में मीठा अधिक खाने से किशोरों को मधुमेह हो रहा है। अब सीबीएसई स्कूलों की कैंटीन में सोडा, चाकलेट, पेस्ट्री नहीं मिला करेंगे। कर्नाटक में हाल ही में अपने स्कूल भोजन कार्यक्रम से चिक्की को हटा लिया है। उसके बदले वहां केले और अंडे दिए जाएंगे। स्कूल तो एहतियात बरत रहे हैं लेकिन अभिभावकों को भी ध्यान देना होगा कि बच्चे मैदा निर्मित, मीठे खाद्य पदार्थों व मीठे सॉफ्ट ड्रिंक से दूरी बरते। कितने ही लोग वडा-पाव के साथ कोल्ड ड्रिंक की बोतल से चुस्कियां लेते हैं।
इसके लिए जनजागृति आवश्यक है। हम जो खाते हैं उसका हमारे स्वास्थ्य और जीवन की गुणवत्ता से सीधा संबंध है। विगत कुछ वर्षों में बच्चे घर का बना उपमा या पोहा खाने की बजाय हाईली प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों का सेवन करने लगे हैं जिनमें नमक, वसा तथा शक्कर की मात्रा अधिक होती है। मैगी, पिज्जा, सैंडविच, मोमोज, बरीटो का प्रचलन बढ़ गया है। कभी-कभार खाने की बात अलग है। लोग रोज ही यह सब मंगा कर खाने लगे हैं। इससे मधुमेह व हृदय रोग का खतरा बढ़ा है।
अस्वास्थ्यकर भोजन की आदत पड़ने से बीमारियां घेर लेती हैं। अन्य स्कूलों व पालकों को भी इस ओर ध्यान देना होगा। बच्चे अंकुरित, पौष्टिक खाद्य, मोटे अनाज से बनी चीजें, हरी सब्जियां खाएं तो उनके स्वास्थ्य के लिए अच्छा होगा। बाहर खाने की आदत आम हो चली है। होटलों में अधिक तेल-मसाले के बने पदार्थ चटपटे लगते हैं लेकिन इससे कोलेस्ट्रोल बढ़ता है। इससे हृदय रोग होने की आशंका बढ़ जाती है।
लेख-चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा