
बढ़ती दुर्घटनाओं के अलावा ट्रेन में दुर्व्यवहार भी (डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: देश में 2023 में कुल 24,678 रेल दुर्घटनाएं हुईं, जिनमें 21,803 लोग मारे गए। मगर इन मरने वालों में करीब 73 फीसदी लोग दुर्घटनाओं के दौरान नहीं बल्कि रेलगाड़यों से गिरकर या गलत ढंग से ट्रैक पर चलने के कारण मौत का शिकार हुए। रेलगाड़यों से हर साल 20 हजार से ज्यादा लोग मारे जाते हैं। पिछले 24 घंटों के अंदर छत्तीसगढ़ के बिलासपुर तथा उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में हुई दो ट्रेन दुर्घटनाओं में 20 लोग मारे गए हैं और इससे ज्यादा लोग घायल हुए हैं। रेलवे का सफर अब अपने सोशल बिहेवियर के कारण भी खतरनाक होता जा रहा है। पहले जनरल डिब्बों में चोरी, झगड़े आम थे, पर अब यह आरपीएफ के सामने रेलवे स्टेशनों पर हो रहे हैं।
कोई बड़ी बात नहीं है कि रेल में सीट के आसपास यह लिखा मिले-यात्री अपने सामान के साथ अपने सम्मान की भी खुद ही रक्षा करें। यह जानने के लिए दो उदाहरण देख लीजिए। पहला उदाहरण है जबलपुर का। मध्यप्रदेश के जबलपुर रेलवे स्टेशन पर एक यात्री ने समोसा वेंडर से समोसा खरीदा और उसे यूपीआई से पेमेंट किया। लेकिन भुगतान नहीं हो पाया और रेल ने चलने की सीटी दे दी। समोसा विक्रेता ने न सिर्फ अपने पैसे लेने के ली। लिए यात्री का कॉलर पकड़ा बल्कि उसकी घड़ी उतार अगर इसका वीडियो मोबाइलों पर नहीं दिखता, तो तय था कि यात्री अपनी इज्जत के साथ ही अपने सामान से भी हाथ धो बैठता और सदमे में रहता। यह बात अलग है कि उस विक्रेता को रेलवे अफसरों ने दंडित किया। एक घटना और है।
हरियाणा के रेवाड़ी में एक महिला श्रद्धालु को स्टेशन पर टीसी द्वारा लात मारने, उसके पति को पीटने का मामला भी सुर्खियों में रहा। जरा वंदे भारत में अव्यवस्था भी देख लीजिए। जोधपुर से दिल्ली जा रही वंदे भारत में कैटरिंग मैनेजर को हार्ट अटैक आया और वह उसी में गिर पड़े। जब उसमें रखे फर्स्ट एड बॉक्स को खोला, तो उसमें सिर्फ वह दवाएं थीं, जो आम तौर पर सर्दी-जुकाम में ही काम आती हैं। सफर लग्जरी जरूर हुआ है पर जान जोखिम में डालने की कीमत पर क्यों? जब वंदे भारत की यह हालत है, तो सोचिए उस ट्रेन का क्या हश्र होगा जिसके शौचालय में भी यात्री सफर करते हैं?
पहले हर स्टेशन पर एएच व्हीलर स्टॉल हुआ करते थे, जिन पर पुस्तकों के साथ ही अखबार और कुछ खास दवाएं भी मिल जाती थीं। मगर अब यह गायब हो चुके हैं। पहले हर स्टेशन के हर प्लेटफार्म पर लोकल फूड यानी पूरी-सब्जी, फल-फ्रूट आदि के ठेले होते थे, मोची मिल जाते थे, यहां तक की बच्चों के लिए इमरजेंसी में काम आने वाले आइटम भी मिल जाते थे, पर यह सब अब कमाई के लिए गायब हो गए हैं। हर चीज पर सरकार की नजर है और वह ठेका देकर कमाई करना चाहती है और यात्री भी ऑनलाइन सामान रेल में ही मंगाकर अपना सफर पूरा कर रहे हैं। स्थानीय वेंडर पूरी जी जान लगा देते हैं। वह अपना एक रुपया भी नुकसान होते देखकर उग्र हो जाते हैं और जबलपुर समोसा कांड स्टेशनों पर नजर आ जाते हैं।
टीटीई को सिर्फ इस बात का ध्यान रहता है कि प्रथम, द्वितीय और थर्ड एसी में कौन सा यात्री अपने स्टेशन के बाद भी सफर कर रहा है ताकि उससे जुर्माना वसूला जाए। सामान और सम्मान के साथ यात्रा करने में यात्रियों के साथ एक जो समस्या आ रही है, वह यह है कि उन्हें इमरजेंसी चिकित्सा भी नहीं मिल पा रही है, जिसके वह हकदार हैं। दरअसल पहले रिजर्वेशन के दौरान चिकित्सक को वरीयता मिलती थी अब तो डीआरएम आदि भी उन्हें मांगने पर भी सीट की पर अनुपलब्धता बताकर मना कर देते हैं।
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रेलगाड़ियों में, स्टेशन पर आरपीएफ की माकूल व्यवस्था होने के कारण पहले थोड़ा डर रहता था। मगर अब इनमें मांगने वाले, ट्रांसजेंडर और साधु की आड़ में बदमाश जिस प्रकार से उगाही करते हैं, वह बताता है कि सुरक्षा तो है ही नहीं, साथ ही यात्रा के दौरान कब आपके साथ बदतमीजी हो जाएगी, कहा नहीं जा सकता। अब टिकट कलेक्टर के पास टिकट चेक करने की भी फुर्सत नहीं होती। साधारण डिब्बे तो जाने दीजिए वह स्लीपर में भी नहीं आता।
लेख- मनोज वार्षेण्य के द्वारा






