
राज्य के संवैधानिक प्रमुख के रूप में राज्यपाल वस्तुत: केंद्र सरकार के एजेंट के तौर पर काम करते हैं। जिस राज्य में किसी विपक्षी पार्टी की सरकार हो, वहां केंद्र सरकार राज्यपाल के माध्यम से उसके कामकाज में रोड़े अटकाती रहती है। बंगाल व तमिलनाडु की मिसाल सामने है। राज्य विधानमंडल द्वारा पारित विधेयकों पर हस्ताक्षर न करते हुए दीर्घकाल तक अटकाए रखने, राज्य सरकार द्वारा तैयार अभिभाषण को पूरा न पढ़ने, सत्र बुलाने को मंजूरी नहीं देने जैसे मामले चर्चित रहे हैं। नतीजा यह होता है कि राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच तनाव बढ़ता चला जाता है। जब महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे की सरकार थी तब उसका भी तत्कालीन राज्यपाल भगतसिंह कोश्यारी से छत्तीस का आंकड़ा था।
बंगाल में तत्कालीन राज्यपाल (अब उपराष्ट्रपति) जगदीप धनखड़ और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का टकराव हमेशा सुर्खियों में रहा। ब्रिटिश शासनकाल में प्रांतों की सरकार पर निगरानी रखने के लिए गवर्नर रहा करते थे जिनके अधिकार भी व्यापक होते थे। आजादी के बाद भी राज्यपाल का पद कायम रखा गया लेकिन उनका कार्य व दायित्व सीमित कर दिया गया। विधानमंडल द्वारा पारित विधेयकों पर हस्ताक्षर कर कानून का रूप देना, राष्ट्रीय दिवस पर परेड की सलामी लेना, राज भवन में विदेशी अतिथियों का स्वागत करना, चुनाव के बाद बहुमत हासिल करनेवाले दल या गठबंधन को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करना, मंत्रिमंडल को शपथ दिलाना, यही राज्यपाल के मुख्य दायित्व हैं। ज्यादातर केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी अपने बुजुर्ग नेताओं को राज्यपाल बना देती है। जिनके लिए राजभवन आरामगाह साबित होते हैं।
अशांत राज्यों में सेना के किसी निवृत्त उच्चाधिकारी को राज्यपाल बना कर भेजा जाता है। केंद्र अपनी राजनीति के तहत किसी राज्य की सरकार गिराने और वहां राष्ट्रपति शासन लगाने के लिए भी राज्यपाल को इस्तेमाल करता है। इसके लिए राज्यपाल से राज्य में कानून-व्यवस्था भंग होने की रिपोर्ट मंगवाई जाती है। कुछ राज्यपालों पर यौन शोषण के संगीन आरोप भी लगते देखे गए हैं। जब नारायणदत्त तिवारी आंध्रप्रदेश के राज्यपाल थे तब उन पर ऐसा आरोप लगा था। अब बंगाल के राज्यपाल सीवी आनंद बोस पर इस तरह के आरोप 2 महिलाओं ने लगाए है। पहले तो राजभवन की एक पूर्व महिला कर्मी ने थाने में राज्यपाल के खिलाफ लिखित शिकायत दी।
उसके बाद एक ओडिसी क्लासिकल डांसर ने उन पर दिल्ली के एक 5 स्टार होटल में यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया। उसकी शिकायत है कि वह विदेश यात्रा से जुड़ी दिक्कतों को लेकर राज्यपाल से मदद मांगने गई थी तब यह कांड हुआ। इस मामले में बंगाल पुलिस ने गत सप्ताह राज्य सरकार को जांच रिपोर्ट सौंप दी। टीएमसी ने राज्यपाल से इस्तीफे की मांग की है। ऐसे प्रकरण को गंभीरता से लिया जाना चाहिए क्योंकि कानून के सामने सभी बराबर हैं। यह भी विचार किया जा सकता है कि क्या संघीय शासन प्रणाली राज्यपाल के बिना नहीं चल सकती? इस पद के औचित्य पर बहस होनी चाहिए।






