(डिजाइन फोटो)
महाराष्ट्र की गरिमा पर अमिट कलंक है बदलापुर की घिनौनी वारदात। इस वारदात के बारे में सिर्फ मन में विचार भी आ जाए तो शरीर के रोएं-रोएं कांप उठते हैं। सोचिये, उन दोनों 4 वर्षीय मासूम छात्राओं पर क्या गुजरी होगी जब उस नराधम ने उनके साथ अश्लील हरकत की होगी। सचमुच, घोर कलयुग आ गया है। महाराष्ट्र जैसे राज्य में जहां हम बड़ी-बड़ी बातें करते हैं वहां इस तरह की वारदात हो जाती है।
स्कूल प्रशासन को जानकारी होने के बाद भी सब लीपापोती में लगे रहते हैं। पुलिस को जानकारी मिलने के बाद भी पालकों को 10-12 घंटे थाने में बिठाकर प्रताड़ित किया जाता है। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के जिले की वारदात और वे भी इसलिए चुप हैं क्योंकि पूरा देश फिलहाल बंगाल की एक डॉक्टर बेटी के रेप-मर्डर के राजनीतिकरण की ‘बहती-गंगा’ में हाथ धो रहा है। कोई संवेदनशीलता नहीं, कोई गंभीरता नहीं।
बेटी कोलकाता की हो या बदलापुर की, भारत की किसी भी बेटी के साथ यदि ऐसा होता है तो उसको किसी को भी राजनीति के चश्मे से नहीं देखना चाहिये। लेकिन सत्तारूढ़ दल की कोई जिम्मेदारी है या नहीं। मुख्यमंत्री और उनका मंत्रिमंडल क्या सिर्फ कैबिनेट की बैठक करने के लिए बना हुआ है।
यह भी पढ़ें- मोबाईल की जानलेवा लत, समाज को होना होगा संवेदनशील
ऐसे समय जब सरकारी तंत्र फेल हो ही गये हैं और सरकार भी नाकाम साबित होती जा रही है तब फैसला माता-पिता को ही लेना होगा। बेटी-बचाओ, ‘बेटी पढ़ाओ’ जैसी घोषणाएं सिर्फ और सिर्फ दिखावा हो गई हैं। अब हर घर-परिवार को यह तय करना चाहिये कि बेटियों को पढ़ाने की जरूरत ही नहीं है। वर्तमान माहौल को देखते हुए तो ऐसा लगता है कि बेटियां कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं।
पहले तो बेटी को कोख में ही मारने की कोशिश होती है। गलती से पैदा हो भी गई तो अक्षय शिंदे जैसे दरिंदे उस पर स्कूल में अत्याचार करते हैं। यहां भी बच गई तो कोलकाता की बेटी जैसा कॉलेज में रेप और मर्डर हो जाता है। वहां भी बच गई और गलती से पढ़-लिखकर कुछ बन गई और ससुराल चली गई तो वहां दहेज के लिए मार दिया जाता है।
आदि काल से महिला की सुरक्षा पर सिर्फ बातें ही हो रही है। कहने को तो राष्ट्र और महाराष्ट्र चांद पर जाने की बात करता है और सूरज की दहलीज को छूने का दंभ भरता है। बस जो नहीं कर सकता, वह है बेटियों की सुरक्षा। छोड़ो-हटाओ… बेटियों को पढ़ाने ही मत भेजो। कम से कम बदलापुर की दोनों मासूम बेटियों को जो जीवन भर का दर्द मिला है, उससे बाकी बच्चियां तो बच जाएंगी।
लेख चंद्रमोहन द्विवेदी द्वारा