अमेरिका में लगी भीषण (डिजाइन फोटो)
नवभारत डेस्क: अमेरिका आग से जूझ रहा है। जमीन से समुद्र तट की ओर बहने वाली सेंटा एना हवाएं जंगल की इस आग को और भड़का और बढा रही हैं। यह आग तो बुझ जायेगी पर कई सुलगते सवाल अपने पीछे छोड़ जायेगी, क्या ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ के नारे लगाने वाले इन प्रश्नों का यथोचित उत्तर दे पायेंगे?
अंतरिक्ष से देखा जा सकने वाला कैलिफोर्निया का दावानल दस दिन से धधक रहा है। अमेरिका के जंगलों में पहले भी भीषण आग लगती रही है, पर इस बार इसने जिस इलाके को चपेट में लिया है, वह इतना खास है कि अमेरिका को इसकी बहुत भारी कीमत चुकानी पड़ रही है।
व्यापक स्तर पर की जा रही अग्नि शमन की कोशिशें देर सवेर कामयाब होंगी। रह जायेंगी तो बस राख हुई वनस्पतियां, उजड़े हुए मकान, जली संपत्तियां, भस्मीभूत मवेशी, पालतू जानवर वगैरह। अपनी तकनीकि दक्षता, तत्परता तथा संसाधनों की प्रचुरता की डींग हांकता अमेरिका ऐसे मौकों पर बुरी तरह विफल क्यों रहता है, जब इसकी सबसे ज्यादा जरूरत होती है?
लॉस एंजिल्स के ग्रिफिथ पार्क में 1933 में लगी आग ने कैलिफोर्निया के करीब 83 हजार एकड़ के इलाके को अपनी चपेट में ले लिया था, जिससे 3 लाख लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ा था। यही नहीं इससे पहले कैलिफोर्निया में पिछले 50 वर्षों में 78 से ज्यादा बार आग लग चुकी है, पर अमेरिका ने इससे कितना सबक लिया, उसकी क्या तैयारी थी, यह आज सबके सामने है।
इस बार कैलिफ़ोर्निया में लगी आग की पिछले साल की आग से तुलना करें तो यह पांच गुना अधिक विकराल है। वह समुद्री पानी और गुलाबी रसायन से आग को बुझाने तथा नियंत्रित करने का प्रयास कर रहा है जो घोषित तौरपर एक पर्यावरण विरोधी प्रयास हैं।
यदि धरती के महाबली अमेरिका का इस मामले में यह हाल है, तो पूर्वी ऑस्ट्रेलिया जैसे अग्नि प्रवण क्षेत्रों और भारत जैसे विकासशील देशों का हाल क्या होगा? तमाम तकनीक और विशेषज्ञों के साथ समुचित निगरानी व्यवस्था होते हुए भी अमेरिका अब तक तय नहीं कर पाया है कि आग लगी कैसे? एक व्यक्ति को इस आरोप में गिरफ्तार किया गया कि उसने ही जंगल में आग लगाना शुरू किया।
बताते हैं कि यह एक अवैध अश्वेत घुसपैठिया है। हालांकि पुलिस मानती है कि उसके खिलाफ कोई पुख्ता सबूत नहीं है, जांच जारी है। एक कंपनी बता रही है कि उसके सेंसर जो बिजली आपूर्ति के दौरान पेड़ की शाखाओं के तारों को छूने या हवा के चलते तारों के टकराने से उड़ने वाली चिंगारी की वजह से हुयी खराबी का पता देते हैं, बताते हैं कि पैलिसेड्स में आग लगने से कुछ ही घंटे पहले 63 ऐसी खामियां थीं, और पूरे इलाके में 317 मामले दिखे जो सामान्य से बहुत ज्यादा हैं।
सबब यह कि बिजली के शार्ट सर्किट के चलते यह आग लगी। स्थानीय अधिकारियों ने लॉस एंजिल्स में आग लगने के पीछे सूखे मौसम की तरफ इशारा किया तो यहां के लोग इसके लिए तेज़ हवाओं को दोष दे रहे हैं, जिसकी रफ्तार कई बार 80 से 100 मील प्रति घंटा तक पहुंच जाती है। उधर अमेरिकी सरकार के रिसर्च में कहा गया है कि पश्चिमी अमेरिका में बड़े पैमाने पर जंगलों में लगी भीषण आग का संबंध ग्लोबल वार्मिंग तथा जलवायु परिवर्तन से है।
उधर दूसरे विशेषज्ञों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन सीधे दोषी नहीं, उसकी वजह से अतिशय वर्षा भी होती है। विमानों से घरों और पहाड़ियों पर चमकीले गुलाबी रंग के अग्निरोधी रसायनों का छिड़काव किया जाना जो पानी की तरह तुरंत वाष्पित न होकर सतह पर बने रहकर आग लगने या जलने की प्रक्रिया को मंद कर देता है, इसमें अमोनियम पॉलीफास्फेट, कुछ दूसरे रसायनों के साथ उर्वरक मिला होता है।
यह रसायन बाद में इंसानों और पर्यावरण पर बुरा असर डालेगा यह तय है। दूसरी तरफ आग बुझाने के लिये समुद्री खारे पानी का अतिशय इस्तेमाल कालांतर में जंगल की जमीन को इतना नमकीन बना देगा कि वहां फिर कुछ और उगना मुश्किल होगा।
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भारत में जहां तकरीबन 55 फीसद जंगल आग की चपेट में आते रहते हैं, अमेरिका जैसे दावानल की कोई आशंका नहीं है क्योंकि यहां शहर मैदानी इलाके में और अमूमन जंगलों से दूर बसे हुये हैं। पहाड़ों पर बसे शहर भी जंगल की आग से किंचित सुरक्षित हैं क्योंकि आसपास के जंगल तेजी से साफ हुए हैं। घने वन क्षेत्रों पर जिस तरह कॉरपोरेट की नजर है, एक न एक दिन उनमें से अधिकांश को साफ हो जाना है।
पर यह तथ्य गौरतलब है, स्टेट ऑफ फॉरेस्ट की 2021 में आयी रिपोर्ट बताती है कि 2013 और 2021 के बीच देश में कुल वन क्षेत्र में बेहद मामूली वृद्धि हुई, जबकि इस दौरान जंगल की आग की घटनाओं में 186 प्रतिशत की बढत दर्ज की गई। जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के खतरे बढे़ हैं। हमको लास एंजिल्स के दावानल से सबक लेते हुए आग का पता लगाने में रिमोट सेंसिंग को महत्व देने और अग्नि पूर्वानुमान प्रणाली विकसित की जानी चाहिए।
लेख- संजय श्रीवास्तव के द्वारा