(डिजाइन फोटो)
पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, बांसुरी को लेकर कहावत है- न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी! कुछ लोग दूसरों को आपस में लड़ाकर खुद चैन की बंसी बजाते हैं। बंसी की वजह से किसी का नाम बंसीलाल, बंसीधर या मुरलीधर रखा जाता है। आपने सुरैया का गाया हुआ पुराना गीत सुना होगा- मुरलीवाले मुरली बजा, मुरली की धुन सुन नाचे जिया! एक भक्ति गीत का आशय है- हे हरे बांस की बांसुरिया, तूने कौन सा तप किया था कि श्रीकृष्ण भगवान तुझे अपने अधरों पर रखते हैं।’’
हमने कहा, ‘‘बांसुरी का महत्व आज भी कम नहीं है। सुषमा स्वराज की बेटी का नाम भी बांसुरी है। वास्तु शास्त्र में बांसुरी को द्वार पर लटकाना शुभ माना गया है। बांसुरी बजाना एक कला है। बांसुरीवादन में सबसे बड़ा नाम पन्नालाल घोष का रहा है।’’
पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, बंसी की धुन से मन तो प्रसन्न होता ही है, इससे रोगों का भी इलाज होता है। गुजरात के नडियाद में सिर्फ बांसुरी बजाकर नरेश ठक्कर और उनके बेटे करण ने 1 लाख से ज्यादा गोवंशों का इलाज किया है। ये लोग अलग-अलग गोशालाओं में जाकर बांसुरी की मधुर धुन सुनाते हैं। इससे बीमार गाएं जल्दी स्वस्थ हो गईं। बंसी की धुन सुनकर गाय का स्ट्रेस लेवल या तनाव घटता है। वह चैन या राहत महसूस करती है।’’
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हमने कहा, ‘‘अब श्रीकृष्ण गोकुल में गाय चराने जाते थे तो उनकी बांसुरी की मोहक धुन से सारा गोवंश मोहित हो जाता था। अपनी सुधबुध भूलकर गोपियां भी दौड़ी चली आती थीं। कृष्णलीला में बांसुरी का बड़ा महत्व है।’’
पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, अभी तो हम नडियाद के नरेश ठक्कर की बात कर रहे हैं जो म्यूजिक थेरेपी या संगीत चिकित्सा से बीमार गोवंश का इलाज करते हैं और वह भी बिल्कुल मुफ्त! हर जगह जाना संभव नहीं होने से अब नरेश ठक्कर और उनका पुत्र मिलकर बांसुरी की धुन का ऑडियो बना रहे हैं जो मुफ्त में देश की गोशालाओं को दिया जाएगा ताकि लाखों गायों का इलाज हो सके। यह 3 प्रकार की आडियो रहेगा। बछिया-बछड़े के लिए अलग, दुधारू गाय के लिए अलग तथा बड़े गोधन के लिए अलग। वे बताएंगे कि किस धुन को कितनी देर बजाना होगा। उनकी बांसुरी की अधिकांश धुन वृंदावनी सारंग राग की हैं।’’
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी द्वारा