स्वास्थ्यकर्मियों की हड़ताल (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: स्वास्थ्य सेवा के ठेका कर्मियों की 23 दिनों से चली आ रही हड़ताल की वजह से राज्य की चिकित्सा सेवा पर अत्यंत विपरीत असर पड़ा है।नवजात शिशुओं की देखभाल, पोषण पुनर्वसन केंद्र तथा क्षयरोग निदान जैसी महत्वपूर्ण सेवा ठप होकर रह गई है।राज्य के 36,000 स्वास्थ्य कर्मचारी गत 19 अगस्त से हड़ताल पर हैं।उनकी मांग है कि 10 वर्षों की सेवा पूरी कर चुके ठेका कर्मचारियों को नियमित सेवा में समायोजित किया जाए।इसके अलावा कुछ अन्य मांगें भी हैं।इसके पहले जारी शासकीय राजपत्र (जीआर) बदलने में सरकार अनावश्यक रूप से विलंब कर रही है, इसलिए आंदोलन तीव्र होता जा रहा है।
महाराष्ट्र के ग्रामीण क्षेत्रों में इस हड़ताल का गंभीर असर नजर आने लगा है।अमरावती, गड़चिरोली व नंदूरबार जैसे आदिवासी जिलों में नवजात शिशुओं के प्राण संकट में हैं।आदिवासी क्षेत्र में ओझा या नीम हकीम शिशुओं को गर्म चिमटे से दागते हैं।हड़ताल के दौरान अब तक 50 से अधिक बाल मृत्यु हो चुकी हैं।इसके लिए हड़ताली कर्मचारी ही नहीं, स्वास्थ्य विभाग भी जिम्मेदार है।महाराष्ट्र में प्रति वर्ष लगभग 18,000,00 प्रसूति होती हैं जिनमें से 70 प्रतिशत ग्रामीण या अर्धशहरी इलाकों में होती हैं।वहां ठेके पर परिचारिका रखी जाती हैं।हड़ताल की वजह से अधिकांश अस्पताल खाली पड़े हैं।महिलाओं के सामने निजी अस्पताल जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।निजी अस्पताल में प्रसूति का बिल 30 से 50 हजार रुपए आता है।इसके अलावा इन दिनों मलेरिया, डेंगू, चिकन गुनिया भी फैल रहा है।
डॉक्टर व नर्स नहीं रहने से सरकारी अस्पतालों की व्यवस्था चौपट है।इतना ही नहीं मुंबई, पुणे व नागपुर में अत्यंत जरूरी आपरेशन भी आगे के लिए टाले जा रहे हैं।सरकारी अस्पतालों का कामकाज ठप है जबकि गरीब व निम्न मध्यम वर्ग के लिए निजी अस्पताल का खर्च उठा पाना संभव नहीं है।राज्य के 36 जिलों के 2,000 से अधिक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र व उपकेंद्र ठेका कर्मचारियों के भरोसे चलते हैं।ऐसी हालत में आदिवासियों, किसानों, मजदूरों व दुर्गम क्षेत्र की जनता को बहुत परेशानी उठानी पड़ रही है।शासकीय सेवा के स्थायी सरकारी कर्मचारी भी स्टाफ के अभाव में काफी तनाव में काम करने के लिए मजबूर हैं।
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वैश्विक स्वास्थ्य संगठन का सुझाव है कि डाक्टर को प्रतिदिन 30 मरीजों को देखना चाहिए लेकिन एक सरकारी डाक्टर के पास रोज 150 मरीज आते हैं।राज्य में हर माह 18,000 क्षयरोगी दर्ज होते हैं लेकिन हड़ताल के कारण अगस्त माह में सिर्फ 9,450 रोगी दर्ज किए गए।समय रहते निदान व इलाज से क्षयरोगी भला चंगा हो जाता है।यही स्थिति टीकाकरण को लेकर है।प्रत्येक स्वास्थ्य केंद्र में हर माह 4 टीकाकरण सत्र रखे जाते हैं लेकिन हड़ताल से यह सब रुक गया है।विकसित देशों में स्वास्थ्य पर बजट की 8 से 9 प्रतिशत राशि खर्च की जाती है लेकिन महाराष्ट्र में 0.7 से 0.8 प्रतिशत खर्च किया जाता है।केरल में प्रति 10,000 आबादी पर 3.5 डाक्टर हैं जबकि महाराष्ट्र में केवल 1.5 डाक्टर उपलब्ध हैं।स्वास्थ्य सेवा का बजट बढ़ाए जाने और हड़ताली कर्मचारियों की समस्या सुलझाई जाने की आवश्यकता है।
लेख-चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा