कौन था कन्नप्पा ( सौ.सोशल मीडिया)
शिवभक्ति और साधना का महापर्व सावन का महीना जल्द आने वाला है। सावन का महीना भगवान शिव को बहुत प्रिय है, और इस दौरान शिव पूजा का विशेष महत्व है। मान्यता है कि सावन में भगवान शिव स्वयं धरती पर वास करते हैं, इसलिए इस महीने में की गई पूजा-अर्चना शीघ्र फलदायी होती है।
सावन में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं और जीवन की समस्याएं दूर होती हैं।
ज्योतिषयों के अनुसार, वैसे तो देवों के देव महादेव के कई भक्त रहे हैं, जिनमें से एक है रावण का नाम सबसे पहले आता हैं। धार्मिक मान्यता के मुताबिक, रावण को भगवान शिव का भक्त माना जाता है, जिसने भोलेनाथ की पूजा कर कई वरदान भी प्राप्त किए थे।
लेकिन आपको बता दें, रावण नहीं, एक और ऐसा व्यक्ति था, जिसे भोलेनाथ का महान भक्त माना जाता है। उस भक्त का नाम था कन्नप्पा।
बता दें, दक्षिण भारत में हर कोई कन्नप्पा की शिवभक्ति के बारे में जानता है। आइए आपको इस खबर में बताते हैं कौन थे शिवभक्त कन्नप्पा, जिन्होंने भोलेनाथ को अपनी आंख तक चढ़ा दी थी।
ज्योतिष धर्म गुरु के अनुसार, कनप्पा, जिन्हें कन्नप्पा नयनार भी कहा जाता है, भगवान शिव के महान भक्त थे। इनकी कहानी श्रीकालहस्ती मंदिर से जुड़ी हुई है। कन्नप्पा का असली नाम थिन्नन था, जो एक शिकारी परिवार से थे। कन्नप्पा ने बिना किसी पारंपरिक विधि के,अपनी शुद्ध भक्ति और प्रेम से शिव की पूजा की थी।
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धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कनप्पा एक शिकारी समुदाय से थे, जो जंगल में शिकार करते हुए श्रीकालहस्ती पहुंचे। इस जंगल में उन्हें एक शिवलिंग दिखा, जिसकी पुजारी पूजा किया करते थे। कन्नप्पा ने बिना किसी विधि विधान के अपनी भक्ति के अनुसार शिवलिंग की पूजा शुरू कर दी क्योंकि उन्हें पूजा करनी नहीं आती थी।
कन्नप्पा प्रतिदिन शिवलिंग पर मांस चढ़ाते थे अपने मुंह में पानी भरकर शिवलिंग का अभिषेक करते और जंगल से पत्ते-फूल तोड़कर बिना धोए चढ़ा देते थे।
पौराणिक मान्यता के अनुसार, जब पुजारी वहां पहुंचते तो उन्हें शिवलिंग अशुद्ध मिला। उन्हें लगा कि यह जानवर का काम है लेकिन रोजाना शिवलिंग पर अशुद्ध फूल-पत्तियां चढ़ी मिलती थी।
यह दृश्य देख पुजारी दुखी होकर शिवलिंग के सामने रोने लगे। तब शिवजी ने पुजारी के मन में कहा कि यह मेरे भक्त का काम है और उसे पूजा करनी नहीं आती है, लेकिन वह मुझसे श्रद्धा भाव से प्रेम करता है। अगर तुम उसे देखना चाहते हो तो छिपकर देखना।
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एक दिन कन्नप्पा पूजा के लिए आए और उन्होंने देखा कि शिवलिंग से खून बह रहा है। कन्नप्पा को लगा कि शिवलिंग की आंख में चोट लगी है, तो उन्होंने जड़ी-बूटी लगाई लेकिन खून नहीं रुका।
यह देख कन्नप्पा ने अपनी एक आंख निकालकर शिवलिंग पर लगा दी। जब उन्होंने देखा कि अभी भी खून बह रहा है, तो उन्होंने अपने पैर का अंगूठा वहां रखा जहां से शिवलिंग पर खून बह रहा था। फिर उन्होंने अपनी दूसरी आंख भी निकालने का फैसला किया, लेकिन इससे पहले कि वह अपनी दूसरी आंख निकाल पाते, भगवान शिव ने उन्हें रोक लिया।
ऐसा कहा जाता है कि भगवान शिव ने कन्नप्पा को दर्शन दिए थे और उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें आशीर्वाद भी दिया। भगवान शिव ने कन्नप्पा को शैव संप्रदाय के नयनार संतों में से एक के रूप में स्थान दिया।
कन्नप्पा को समर्पित मंदिर श्रीकालहस्ती में स्थित है, जो आंध्र प्रदेश में है। कन्नप्पा को 63 नयनार संतों में से एक माना जाता है। कन्नप्पा की कहानी को दक्षिण भारतीय परंपराओं में व्यापक रूप से जाना जाता है।