
काल भैरव जयंती 2025 (सौ.सोशल मीडिया)
Kaal Bhairav Jayanti 2025 Kab Hai: भगवान शिव के रौद्र रूप को समर्पित काल भैरव जयंती हिन्दू धर्म में खास महत्व रखता है। यूं तो हर माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी का दिन कालभैरव की पूजा अर्चना के लिए समर्पित है। इसे ‘कालाष्टमी’ के नाम से भी जाना जाता है लेकिन जयंती का उपलक्ष्य मार्गशीर्ष माह की अष्टमी तिथि को ही मनाते हैं।
इस बार मार्गशीर्ष माह की अष्टमी तिथि यानी कालभैरव जयंती का पर्व 12 नवंबर 2025, दिन बुधवार को मनाया जाएगा। कहते हैं कि जो भी इस दिन सच्चे मन से शिव के रौद्र रूप काल भैरव की उपासना करता है, बाबा काल भैरव उसके तमाम कष्ट व परेशानियां हर लेते हैं और उसकी हर मनोकामनाएं भी पूरी करते हैं। भयंकर से भयंकर शत्रुओं से वे अपने भक्तों की रक्षा करते हैं। तो आइए इस पावन तिथि से जुड़ी प्रमुख बातों को जानते हैं, जो इस प्रकार हैं –
पंचांग के अनुसार, अष्टमी तिथि की शुरुआत 11 नवंबर 2025, मंगलवार को सुबह 11 बजकर 08 मिनट पर होगी। वहीं, अष्टमी तिथि का समापन 12 नवंबर 2025, बुधवार को सुबह 10 बजकर 58 मिनट पर होगा। उदया तिथि को देखते हुए कालभैरव जयंती का पर्व 12 नवंबर 2025, दिन बुधवार को मनाया जाएगा।
काल भैरव जयंती के दिन व्यक्ति को प्रात:काल स्नान-ध्यान करने के बाद भगवान भैरव के मंदिर में जाकर गंगा जल अर्पित् करना चाहिए। इसके बाद भगवान भैरव को फल-फूल, धूप-दीप, मिष्ठान, पान, सुपाड़ी आदि अर्पित् करना चाहिए।
भगवान भैरव को प्रसन्न करने के लिए साधक को इमरती या जलेबी चढ़ाना चाहिए।भगवान भैरव की पूजा का पूरा पुण्यफल पाने के लिए अंत में उनकी आरती करना बिल्कुल न भूलें।
भगवान काल भैरव को भगवान शिव का ही एक रौद्र रूप माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इसी दिन भगवान शिव ने काल भैरव के रूप में अवतार लिया था। उन्हें काशी का कोतवाल भी कहा जाता है और मान्यता है कि काशी में उनकी अनुमति के बिना कोई भी प्रवेश नहीं कर सकता।
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काल भैरव की पूजा करने से व्यक्ति के सभी प्रकार के भय, शत्रु बाधाएं और नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है। काल का अर्थ है समय और भैरव इसके नियंत्रक हैं। उनकी पूजा से जीवन में समय का सही उपयोग करने और कार्यों को समय पर पूरा करने की प्रेरणा मिलती है।






