मां चंद्रघंटा की कथा (सौ.सोशल मीडिया)
Maa Chandraghanta ki Katha: आज पूरे देशभर में शारदीय नवरात्रि का तीसरा दिन मनाया जा रहा है। आज का दिन मां जगदम्बा के तीसरे स्वरूप मां चंद्रघंटा की पूजा-अर्चना के लिए समर्पित होता है। आपको बता दें कि, मां जगदम्बा के तीसरे स्वरूप मां चंद्रघंटा के माथे पर घंटे के आकार का आधा चंद्रमा सुशोभित होने के कारण ही उन्हें ‘चंद्रघंटा’ के नाम से जानते हैं।
धार्मिक मान्यता है कि घर में मां चंद्रघंटा के आगमन से सुख-शांति का आगमन होता हैं। चंद्रघंटा माता को स्वर की देवी भी कहा जाता है, जो सिंह पर सवार होकर असुरों और दुष्टों को संहार करती हैं। नवरात्रि के तीसरे दिन व्रती को मां चंद्रघंटा की पूजा के दौरान व्रत कथा का पाठ जरूर करना चाहिए। ऐसे में आइए पढ़ते हैं माता चंद्रघंटा की कथा-
नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की कथा के अनुसार, महिषासुर नामक एक शक्तिशाली राक्षस ने स्वर्गलोक में आतंक मचाना शुरू कर दिया और वह तीनों लोकों पर अपना अधिपत्य जमाना चाहता था। महिषासुर के बढ़ते आतंक से सभी देवी देवता परेशान और चिंतित थे और उन्होंने त्रिदेव यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश से मदद मांगी।
सभी वेवी देवताओं की व्यथा सुनकर त्रिदेव बहुत क्रोधित हुए और उनके क्रोध से एक दिव्य ऊर्जा प्रकट हुई। इस ऊर्जा से मां दुर्गा के चंद्रघंटा स्वरूप का जन्म हुआ, जिनके मस्तक पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र है। इसी वजह से उनका नाम चंद्रघंटा पड़ा।
भगवान शिव ने मां चंद्रघंटा को अपना त्रिशूल भगवान विष्णु ने अपना चक्र और देवराज इंद्र ने अपना घंटा प्रदान किया। इसके बाद अन्य सभी देवताओं ने भी मां को अपने-अपने अस्त्र-शस्त्र दे दिए।
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फिर मां चंद्रघंटा महिषासुर से युद्ध करने पहुंचीं और माता ने अपने अस्त्र-शस्त्रों के साथ महिषासुर का वध किया, जिससे देवताओं को उसके आतंक से मुक्ति मिली।
साथ ही इसकी कथा भी पढ़ी जाती है। ऐसा कहा जाता है कि मां चंद्रघंटा की पूजा से साधक को साहस, आत्मविश्वास और शांति की प्राप्ति होती है। मां चंद्रघंटा की कथा को पढ़कर आपको भी आत्मविश्वास बढ़ जाएगा। साथ ही आपका व्रत भी पूरा हो जाएगा।