(सौजन्य सोशल मीडिया)
धार्मिक दृष्टिकोण से सावन माह को बहुत ही पवित्र और शुभ माना गया है। यह पूरा महीना भगवान शिव की पूजा के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। सनातन धर्म में कई ऐसी प्रथाएं हैं जिनका पालन हम सदियों से करते चले आ रहे हैं, ऐसी ही रस्मों में से एक है शादी के बाद लड़कियों का पहले सावन में मायके जाना।
इस लिहाज से नवविवाहित महिलाओं के लिए भी सावन के माह का खास महत्व है। ऐसे में आइए जान लेते हैं कि पहले सावन माह में नवविवाहित महिलाओं का मायके जाना क्यों शुभ माना जाता है और इसका क्या महत्व है….
ज्योतिष-शास्त्र के अनुसार, शादी के बाद पहले सावन पर नवविवाहित दुल्हन को मायके जरूर जाना चाहिए। इसे बहुत ही शुभ माना जाता है। इस परंपरा का सदियों से पालन किया जा रहा है। मान्यता है कि, इस परंपरा को निभाने से मायके और ससुराल के बीच सामंजस्य की स्थिति बनी रहती है और मेल-मिलाप बढ़ता है।
हिंदू धर्म में बेटियों को घर के लिए बहुत ही शुभ माना गया है। बेटियों को घर की लक्ष्मी कहा जाता है। ऐसे में जब बेटियां शादी के बाद ससुराल चली जाती हैं, तो मायके में उदासी छा जाती है। ऐसे में सावन के माह में बेटी के मायके आने पर घर में फिर से खुशहाली छा जाती है।
सावन पर नवविवाहित बेटियों का अपने मायके जाने के पीछे का एक कारण यह भी है कि, बेटी से ही घर का भाग्य जुड़ा माना जाता है। ऐसे में सावन के महीने में जब बेटियां अपने मायके आती हैं, तो उसका भाग्य घर के भाग्य को नियंत्रित करता है। इससे पारिवारिक जीवन में खुशियां बढ़ती हैं और घर में सुख-समृद्धि आती है। इससे ससुराल और मायके के बीच की स्थिति भी ठीक रहती है।
ऐसी मान्यता है कि शादी के बाद पहले सावन में जब लड़कियां मायके आती हैं तो वे घर में तुलसी का नया पौधा लगाती हैं। इससे मायके के साथ-साथ ससुराल में भी सदैव खुशहाली बनी रहती है। ऐसा करने से घर में सुख समृद्धि का आगमन होता है।
प्राचीन काल में ये प्रथा इसलिए भी बनाई गई थी क्योंकि ससुराल में लड़कियों को बहुत काम करना पड़ता था। ऐसे में यदि वो कुछ दिनों के लिए अपने मायके चली आती थीं तो उनको कुछ आराम मिल जाता था। तभी से ये एक मुख्य रस्म मानी जाने लगी। हालांकि पहले सावन में मायके जाना है या नहीं, ये किसी के लिए भी एक व्यक्तिगत फैसला है, लेकिन ज्योतिष की मानें तो शादी के बाद लड़कियों को पहला सावन मायके में ही मनाना चाहिए।
लेखिका- सीमा कुमारी