आज गणाधिप चतुर्थी 2024 (सौ.सोशल मीडिया)
Ganadhipa Sankashti Chaturthi 2024: हिंदू धर्म में प्रथम पूज्य भगवान श्रीगणेश है जिनकी पूजा सबसे पहले की जाती है। मासिक गणेश चतुर्थी में से एक गणाधिप संकष्टी चतुर्थी का व्रत आज 18 नवंबर को रखा जा रहा है। इस दिन भगवान श्रीगणेश की शुभ मुहूर्त में पूजा की जाती है तो वहीं पर आज सोमवार का शुभ दिन पड़ने की वजह से विशेष फल की प्राप्ति होती है। इसके अलावा आज आप संकष्टी चतुर्थी व्रत का फल पाना चाहते हैं तो इस दिन व्रत कथा पड़ सकती है।
यहां पर आज का शुभ दिन हिंदू पंचाग के अनुसार, कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि यानि आज 18 नवंबर की शाम 6 बजकर 55 मिनट से शुरू हो रही है, जो अगले दिन यानी 19 नवंबर दोपहर की शाम 5 बजकर 28 मिनट पर समाप्त हो जाएगी। इस शुभ तिथि औऱ मुहूर्त में भगवान श्रीगणेशजी का पूजन किया जाता है। इस दिन शाम के समय भगवान चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाता है. ऐसे में चन्द्रोदय 18 नवंबर की शाम 7 बजकर 34 मिनट पर होगा। इन मुहुर्त में पूजा करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है तो इस दौरान पौराणिक कथा पड़ने से व्रत पूरा होता है।
आज गणाधिप संकष्टी चतुर्थी व्रत के दिन पौराणिक कथा पढ़ने से मनोरथ सारे पूर्ण होते हैं इसलिए चलिए जानते हैं पौराणिक कथा के बारे में जिन्हें पढ़ने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती है। यहां पर पौराणिक कथा के अनुसार, रामायण से जुड़ी इस कथा में त्रेतायुग में भगवान राम के पिता दशरथ एक प्रतापी राजा थे, उन्हें शिकार करना बहुत ही अच्छा लगता था जहां वे एक बार शिकार करने गए थे उसी दौरान उनके तीर से जानवर का शिकार नहीं होते हुए श्रवणकुमार नामक ब्राम्हण का वध हो गया था।
यहां पर श्रवणकुमार के अंधे माता-पिता ने राजा दशरथ को श्राप दे दिया। कहा कि जिस तरह हम पुत्र वियोग में अपनी जान दे रहे है उस तरह ही तुम्हारी मृत्यु भी पुत्र वियोग में हो जाएगी। यहां पर इधर राजा दशरथ पुत्रेष्टि यज्ञ कराया फलस्वरूप जगदीश्वर ने राम रूप में उनके यहां अवतार लिया. वहीं भगवती लक्ष्मी जानकी के रूप में अवतरित हुईं।
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यहां पर माता कैकयी ने पुत्र राम को 14 वर्ष का वनवास दे दिया जिसके साथ ही पिता की आज्ञा पाकर भगवान राम पत्नि माता सीता औऱ भाई लक्ष्मण सहित 14 वर्ष के वनवास के लिए चले गए। यहां उन्होंने खर-दूषण आदि अनेक राक्षसों का वध किया, इससे क्रोधित होकर रावण ने सीताजी का अपहरण कर लिया. फिर सीता की खोज में भगवान राम ने पंचवटी का त्याग किया और ऋष्यमूक पर्वत पर पहुंचकर सुग्रीव से मित्रता की।
इसके बाद सीता जी की खोज में हनुमान आदि वानर तत्पर हुए. उन्हें ढूंढते-ढूंढते गिद्धराज संपाती को देखा. वानरों को देखकर संपाती ने उनकी पहचान पूछी कहा कि तुम कौन हो? इस वन में कैसे आये हो? किसने तुम्हें भेजा है?संपाती की बात सुनकर वानरों ने उत्तर दिया कि दशरथ नंदन रामजी, सीता और लक्ष्मण जी के साथ दंडक वन में आए हैं. जहां पर उनकी पत्नी सीताजी का अपरहण हो गया है. हे मित्र! इस बात को हम लोग नहीं जानते कि सीता कहां हैं?
संपाती ने कहा कि तुम सब रामचंद्र के सेवक होने के नाते हमारे मित्र हो. सीता जी का जिसने हरण किया है वह मुझे मालूम है। सीता जी को बचाने के लिए मेरा छोटा भाई जटायु अपने प्राण गंवा चुका है. यहां से थोड़ी ही दूर पर ही समुद्र है और समुद्र के उस पार राक्षस नगरी है. वहीं अशोक के पेड़ के नीचे सीता जी बैठी हैं। सीता जी अभी भी मुझे दिखाई दे रही हैं. सभी वानरों में हनुमान जी अत्यंत पराक्रमशाली है। अतः उन्हें वहां जाना चाहिए, क्योंकि सिर्फ हनुमान जी ही अपने पराक्रम से इस विशाल समुद्र को लांघ सकते हैं।
बताया जाता है कि,संपाती की बात सुनकर हनुमान जी ने पूछा हे संपाती! इस विशाल समुद्र को मैं कैसे पार कर सकता हूं? जब हमारे सब वानर उसे पार करने में असमर्थ हैं तो मैं ही अकेला कैसे पार जा सकता हूं? संपाति ने हनुमान जी को उत्तर दिया कि हे मित्र, आप संकटनाशक गणेश चतुर्थी का व्रत करो. उस व्रत के प्रभाव से आप समुद्र को क्षणभर में पार कर लोगे.संपाती के कहने पर ही हनुमान भगवान ने संकट चतुर्थी के उत्तम व्रत को किया. इसके प्रभाव से हनुमान जी क्षणभर में ही समुद्र को लांघ गए. अत: इस लोक में इसके सामान सुखदायक कोई दूसरा व्रत नहीं हैं।