हरितालिका तीज 2024 (सौ.फाइल फोटो)
अखंड सौभाग्य और सुहाग के प्रतीक ‘हरतालिका तीज’ (Hartalika Teej 2024) का पावन त्योहार जल्द आने वाला है। जिसका हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरतालिका तीज महिलाएं पूरे हर्षोल्लास से मनाती हैं। सनातन संस्कृति में पुष्प, कुसुम या फूलों का बहुत ही महत्व है। भगवान को पुष्पों की माला बहुत ही प्रिय है।
हरतालिका तीज (Hartalika Teej) के दिन सौभाग्यवती माताएं और बहनें भगवान शिव, गौरी, गणपति, माता पार्वती, माता महालक्ष्मी के अनुग्रह प्राप्त करने के लिए फुलेरा (Phulera) बनती है। फुलेरा बांस की लकड़ियों से बनाया जाता है। इसे बनाने के लिए कटर, टेप, धागा और फूल आदि की आवश्यकता पड़ती है।
हरितालिका व्रत में फूलों की शीतलता इनकी भीनी खुशबू वातावरण को शुद्ध और पवित्र बनाए रखती है। इस पर्व में फुलेरा का बहुत ही महत्व है। आदिकाल से यह परंपरा बनी हुई है। माता पार्वती (Maa Parvati) ने भी अनादि शंकर की प्राप्ति के लिए अनेक सुंदर रंगों के पुष्पों से भगवान शिव को प्रसन्न किया था।
दक्षिण प्रांत में खासकर महिलाएं विभिन्न रंगों का आकर्षक और मनोरम फुलेरा (beautiful phulera) बनाती हैं और घर के चारों ओर पूजा स्थल के साथ-साथ अन्य जगहों पर लगाती हैं। यह माताओं और बहनों को निर्जला उपवास रहने के लिए प्रेरित कर
ज्योतिषियों के अनुसार, हरतालिका तीज में पूजा करते समय फुलेरा का काफी महत्व है। पूजा के दौरान भगवान शिव के ऊपर जलधारा की जगह फुलेरा बांधा जाता है। फुलेरा को पांच तरह के फूलों से बनाया जाता है। फुलेरा में बांधी जाने वाली 5 फूलों की मालाएं भगवान शंकर की पांच पुत्रियों (जया, विषहरा, शामिलबारी, देव और दोतली) का प्रतीक है।
मान्यताओं के अनुसार, मां पार्वती ने सबसे पहले हरतालिका तीज व्रत किया था। इस व्रत के दौरान मां पार्वती ने अन्न और जल का त्याग किया था। मत पार्वती के इस कठिन तप से प्रसन्न होकर भगवान भोलेनाथ ने उन्हें दर्शन दिए और उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया। तभी से मनचाहे वर की कामना और अखंड सौभाग्य के लिए महिलाएं हरतालिका तीज का व्रत रखती है।
लेखिका- सीमा कुमारी