
जितिया व्रत 2024 (सौ. Shutterstoke)
‘जीवित्पुत्रिका’ (Jitiya Vrat 2024) का पर्व सनातन धर्म में विशेष महत्व रखता है। यह व्रत हर साल आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है। इस साल यह व्रत 25 सितंबर, बुधवार को रखा जाएगा।आपको जानकारी के लिए बता दें, यह कठिन व्रत उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में अधिक प्रचलित है। जितिया व्रत (Jitiya Vrat) माताएं अपनी संतान की लंबी उम्र, समृद्धि और उन्नत जीवन के लिए रखती हैं।
मान्यताओं के अनुसार, संतान के लिए किया गया यह व्रत किसी भी बुरी परिस्थिति में उसकी रक्षा करता है। संतान प्राप्ति की कामना के लिए भी यह व्रत रखा जाता है। आइए जानें जीवित्पुत्रिका व्रत की पूजा विधि और इसकी महिमा-
पंचांग के अनुसार, आश्विन माह में आने वाली कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन हर साल जितिया का व्रत रखा जाता है। इस साल कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि का आरंभ 24 सितंबर 2024 को दोपहर 12:38 मिनट से हो रहा है, जिसका समापन अगले दिन 25 सितंबर 2024 को दोपहर 12:10 मिनट पर होगा। ऐसे में उदयातिथि के आधार पर जितिया का व्रत 25 सितंबर 2024 को रखा जाएगा।
25 सितंबर 2024 को जितिया व्रत की पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 10 बजकर 41 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 12 मिनट तक है। हालांकि व्रत का पारण अगले दिन 26 सितंबर 2024 को किया जाएगा। वहीं 24 सितंबर 2024 को जितिया व्रत के नहाय-खाय की पूजा होगी।
प्रातः जल्दी उठकर स्नान आदि कर साफ वस्त्र धारण करें। उसके बाद प्रदोष काल में ही गाय के गोबर से पूजा स्थल को साफ कर ले।
इसी के बाद एक छोटा सा तालाब बनाकर तालाब के पास एक पाकड़ की डाल लाकर खड़ी कर दें।
फिर जीमूतवाहन की मूर्ति जल के पात्र में स्थापित कर लें। धूप, दीप आदि से आरती करें एवं भोग लगावें। इस दिन बाजरा से मिश्रित पदार्थ भोग में लगायी जाती है।
इसी के बाद मिट्टी तथा गाय के गोबर से चीन और सियारिन की मूर्ति बनाई जाती है।
जिनके माथे पर लाल सिंदूर का टीका लगाया जाता है। फिर व्रत की कथा पढ़ी और सुनी जाती है।
मां पार्वती को 16 पेड़ा, 16 दूब की माला, 16 खड़ा चावल, 16 गांठ के धागा, 16 इलायची, 16 खड़ी सुपारी, 16 लौंग, 16 पान और श्रृंगार का सामान अर्पित किया जाता है।
वंश की वृद्धि और प्रगति के लिए उपवास कर बांस के पत्तों से पूजा की जाती है।
इस व्रत में माताएं सप्तमी खाना व जल ग्रहण करके व्रत की शुरुआत करती हैं और अष्टमी को पूरे दिन निर्जला उपवास करती हैं और नवमी को व्रत का समापन करती है।
‘जीवित्पुत्रिका’ यानी ‘जितिया’ पर्व का क्या है महत्व
सनातन धर्म में ‘जीवित्पुत्रिका’ यानी ‘जितिया’ पर्व का विशेष महत्व है। इस व्रत को करने से संतान की आयु लंबी होती है। साथ ही पुत्र को आरोग्य जीवन प्राप्त होता है। इस व्रत में महिलाएं 24 घंटे तक अनवरत निर्जला उपवास रखती हैं। इस व्रत के पुण्य प्रताप से व्रती के बच्चे तेजस्वी, ओजस्वी और मेधावी होते हैं।






