
Tadka rakshasi and Ram Laxman (Source. Pinterest)
Tadka Rakshasi Kon Thi: त्रेता युग में भगवान श्रीराम ने अधर्म के विनाश और धर्म की स्थापना के लिए अवतार लिया। रावण वध से पहले श्रीराम ने अनेक दुष्ट राक्षसों का संहार किया, जिनमें ताड़का वध का विशेष महत्व है। रामायण में श्रीराम के जीवन प्रसंगों का विस्तार से वर्णन मिलता है और उसी में ताड़का वध की कथा भी आती है। यह वध किसी व्यक्तिगत शत्रुता के कारण नहीं, बल्कि ऋषि-मुनियों की सुरक्षा और यज्ञों की रक्षा के लिए किया गया था। आइए जानते हैं कि अति भयावह राक्षसी ताड़का वास्तव में कौन थी।
कथाओं के अनुसार, ताड़का मूल रूप से राक्षसी नहीं थी। वह यक्षराज सुकेतु की सुंदर पुत्री थी। कहा जाता है कि सुकेतु को संतान नहीं थी, तब उन्होंने ब्रह्मा जी की कठोर तपस्या की। ब्रह्मा जी प्रसन्न हुए और उन्हें संतान प्राप्ति का वरदान दिया। फलस्वरूप सुकेतु को एक अत्यंत सुंदर पुत्री प्राप्त हुई, जिसे हजार हाथियों के समान बल का वरदान भी मिला। उसका नाम ताड़का रखा गया और वह “सुकेतुसुता” के नाम से भी जानी गई।
समय आने पर यक्षराज सुकेतु ने ताड़का का विवाह सुंद नामक दैत्य से कर दिया। विवाह के बाद ताड़का का स्वभाव धीरे-धीरे दैत्यों जैसा हो गया। इसी दौरान किसी कारणवश महर्षि अगस्त्य ने ताड़का को श्राप दे दिया, जिससे वह यक्षिणी से राक्षसी बन गई। यह श्राप उसके जीवन का सबसे बड़ा मोड़ साबित हुआ।
जब सुंद को ताड़का के श्राप की जानकारी हुई, तो वह क्रोधित होकर अगस्त्य ऋषि का वध करने उनके आश्रम पहुंच गया। लेकिन महर्षि अगस्त्य ने अपनी तपोबल शक्ति से सुंद को भस्म कर दिया। पति के वध से व्यथित ताड़का ने अगस्त्य ऋषि से बदला लेने का संकल्प लिया और आश्रमों को उजाड़ने लगी। उसके आतंक से ऋषि-मुनियों के यज्ञ भंग होने लगे।
स्थिति की गंभीरता को देखते हुए अगस्त्य ऋषि ने महर्षि विश्वामित्र से सहायता मांगी। विश्वामित्र ने राजा दशरथ से उनके पुत्र श्रीराम और लक्ष्मण को अपने साथ ले जाने की अनुमति ली। विश्वामित्र के सान्निध्य में दोनों भाइयों को दिव्य अस्त्र-शस्त्रों का ज्ञान मिला। अंततः वन में श्रीराम ने अपने बाण से ताड़का का वध किया। कहा जाता है कि श्रीराम के हाथों मारे जाने से ताड़का श्रापमुक्त होकर स्वर्ग को प्राप्त हुई।
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ताड़का वध की कथा यह संदेश देती है कि अधर्म चाहे किसी भी रूप में हो, उसका अंत निश्चित है। साथ ही यह भी कि भगवान का कार्य केवल दंड देना नहीं, बल्कि आत्मा को मुक्ति का मार्ग दिखाना भी है।
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