
भगवान शिव की पूजा का महत्व (सौ.सोशल मीडिया)
Pradosh Vrat Lord Shiva 2025: साल 2025 का आखिरी प्रदोष व्रत 17 दिसंबर को रखा जा रहा है। हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत को भगवान शिव की विशेष आराधना का दिन माना जाता है। वर्ष का आखिरी प्रदोष व्रत इसलिए भी खास माना जाता है, क्योंकि इसे पूरे साल की साधना और आने वाले समय की शुभ शुरुआत से जोड़ा जाता है। मान्यता है कि इस दिन श्रद्धा से की गई पूजा जीवन में अटकी हुई समस्याओं को दूर करने में मदद मिलती है।
प्रदोष व्रत हर माह त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है, लेकिन वर्ष का अंतिम प्रदोष विशेष फलदायी माना गया है। धार्मिक विश्वासों के अनुसार, इस दिन भगवान शिव अपने भक्तों की प्रार्थनाओं को शीघ्र स्वीकार करते हैं। यह व्रत न केवल आध्यात्मिक शांति देता है, बल्कि मानसिक तनाव और नकारात्मकता को भी कम करता है।
प्रदोष काल में शिव पूजन को अत्यंत शुभ बताया गया है। इस समय शिवलिंग पर जल, दूध और बेलपत्र अर्पित करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। माना जाता है कि इस व्रत से व्यक्ति के जीवन में चल रही रुकावटें धीरे-धीरे समाप्त होने लगती हैं और कार्यों में सफलता मिलने लगती है।
साल के आखिरी प्रदोष व्रत पर सच्चे मन से “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जाप करना विशेष प्रभावशाली माना गया है। इसके साथ शिवलिंग पर दीपक जलाकर शांत भाव से प्रार्थना करने से जीवन की बड़ी से बड़ी बाधा भी दूर हो सकती है। यह उपाय सरल होने के साथ-साथ आस्था से जुड़ा हुआ है।
साल का आखिरी प्रदोष व्रत क्यों है खास
हिंदू पंचांग के अनुसार, प्रत्येक माह के त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाता है, जो भगवान शिव को समर्पित होता है। जब यह व्रत वर्ष का अंतिम प्रदोष होता है, तब इसका महत्व और भी बढ़ जाता है। मान्यता है कि इस दिन की गई पूजा आने वाले वर्ष के लिए सकारात्मक ऊर्जा और शुभ फल प्रदान करती है।
प्रदोष व्रत को भगवान शिव की आराधना का श्रेष्ठ समय माना गया है। शास्त्रों के अनुसार, प्रदोष काल में शिव पूजन करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और जीवन के कष्टों से मुक्ति मिलती है। यह व्रत मानसिक शांति और आत्मबल को भी मजबूत करता है।
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धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस प्रदोष व्रत को रखने से करियर, स्वास्थ्य और पारिवारिक जीवन में स्थिरता आती है। विशेष रूप से जो लोग लंबे समय से किसी परेशानी या रुकावट का सामना कर रहे हैं, उनके लिए यह व्रत राहत लेकर आ सकता है।






