
दीवाली और देव दीवाली के अंतर (सौ. सोशल मीडिया)
Importance of Dev Diwali: देशभर में 20 अक्टूबर को दीवाली मनाई गई जिसमें दीपों की रोशनी से घर और आंगन जगमगाएं। 5 नवंबर को एक बार फिर दिवाली जैसा माहौल देखने के लिए मिलने वाला है। दिवाली नहीं देव दीपावली, उत्तरप्रदेश के वाराणसी में मनाई जाएगी। दोनों दीवाली में दीपों का महत्व होता है लेकिन आपने कभी सोचा है कि, दोनों दीवाली एक-दूसरे से अलग कैसे हो सकती है। चलिए जान लेते है दोनों के बीच का अंतर।
यहां पर देव दीपावली की बात की जाए तो, यह हिंदूओं का विशेष त्योहार होता है। इसे देव दीवाली यानि कि देवताओं की दीवाली के रूप में कहा जाता है। हिंदू मानते है कि, देवता इस दिन धरती पर आकर उत्सव मनाते है। वाराणसी में मनाया जाने वाला यह उत्सव एक दीपोत्सव की तरह होता है। इस मौके पर लोग हज़ारों दीप जलाते हैं, देवताओं से प्रार्थना करते हैं और उनके आशीर्वाद की कामना करते हैं। देव दीपावली भगवान शिव को सम्मान देने के लिए मनाई जाती है। इस दिन को लेकर कहा जाता है कि, देव दीपावली उस दिन का प्रतीक है जब भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक एक शक्तिशाली राक्षस का वध किया था। इसलिए भगवान शिव को त्रिपुरारी कहते है।
इसके अलावा दीवाली का पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत के अवसर पर मनाया जाता है। दीवाली में भगवान श्रीराम के अयोध्या वापसी के रूप में दीप जलाकर त्योहार मनाने का प्रतीक होता है। दीवाली, रोशनी का त्योहार है तो वहीं पर हर कोई इस त्योहार को हर्षोल्लास के साथ मनाते है।
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यहां पर दीवाली और देव दीवाली के बीच मुख्य तौर पर कई अंतर होते है। दिवाली, कार्तिक अमावस्या के रूप में मनाई जाती है। यह भगवान राम की रावण पर विजय के बाद अयोध्या वापसी का उत्सव है। इसके अलावा देव दीपावली की बात की जाए तो, यह कार्तिक पूर्णिमा को मनाई जाती है जो यह भगवान शिव द्वारा त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध करने की खुशी में मनाई जाती है।दिवाली पर लक्ष्मी पूजन किया जाता है वहीं, देव दिवाली पर भगवान शिव की पूजा और गंगा स्नान का विशेष महत्व होता है।






