
स्वयंभू पालेश्वर महादेव मंदिर में स्थापित शिवजी की मूर्ति
मुंबई : अंधेरी ईस्ट स्थित मरोल गांव में स्वयंभू पालेश्वर महादेव मंदिर का इतिहास हजारों साल पुराना है जो अपने-आप में हैरान करने वाला है। इस मंदिर की इतनी महिमा है कि कहा जाता है कि जो भी भक्त सच्चे मन से यहां पूजा करते हैं वे कभी यहां से खाली हाथ नहीं लौटते। इस मंदिर की इतनी ख्याति है कि हर साल यहां दूर-दूर से शिव भक्त दर्शनों के लिये आते हैं। यह संख्या हर साल बढ़ती ही जा रही है।
स्वयंभू पालेश्वर महादेव मंदिर जब अस्तित्व में आया था, उसी समय सायन के बाद का इलाका सष्टी बेल्ट टापू के नाम से जाना जाता था और सायन से लेकर कोलाबा तक का इलाका मुंबई के नाम विख्यात था। स्वयंभू पालेश्वर महादेव मंदिर यहां आसपास व अन्य परिसरों में रहने वाले परिवारों की पीढ़ी-दर-पीढ़ी आस्था का केंद्र बना हुआ है। बताते हैं कि भक्ति भाव से उपासना करने वाला शिवभक्त यहां से कभी निराश होकर नहीं गया है। कालान्तर में जैसे-जैसे मंदिर की ख्याति बढ़ी श्रद्धालुओं की संख्या भी यहां बढ़ती गई।
बताया जाता है कि मंदिर का निर्माण पाली राज्य के राजा ने करवाया था। उस समय यहां पर ईसाई, किश्चियन और कैथोलिक समुदाय के लोग ज्यादा रहते थे। मंदिर में सभी समुदाय के लोग दर्शन के लिए आते थे और स्वयंभू पालेश्वर महादेव भक्तों का कल्याण करते थे। मंदिर के प्रति लोगों में बड़ी श्रद्धा रहती थी। जब मुंबई पर पुर्तगालियों का कब्जा हुआ तो उन लोगों ने यहां कई मंदिरों को ध्वस्त कर दिया था। इसमें स्वयंभू पालेश्वर महादेव का मंदिर भी शामिल था।
श्री स्वयंभू पालेश्वर महादेव सेवा समिति द्वारा इस मंदिर का संचालन किया जा रहा है। समिति के पदाधिकारी आवटी बताते है कि 1940 में‘भारत छोड़ो अंग्रेजों’का नारा बुलंद हो रहा था। उसी दौरान विट्ठल भागूजी आवटी अंधेरी में आए और मनपा में नौकरी करने लगे। मंदिर के पास में चार एकड़ में तालाब बना हुआ था। जब मंदिर को पुर्तगालियों ने ध्वस्त किया था तो मूर्ति को तालाब में फेंकने की कोशिश की थी। परंतु मूर्ति को उठाने में वे लोग असमर्थ हो गए थे तो मूर्ति को छोड़ कर चले गए।
आवटी को स्वयंभू पालेश्वर महादेव ने सपने में अखंडित मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा करने का सपना दिखाया था। इसी के बाद 1940 में विट्ठल भागूजी आवटी मंदिर का निर्माण कर वैदिक विधि-विधान से शिवलिंग की प्राण प्रतिष्ठा कराई थी। इस दौरान मंदिर निर्माण में स्थानीय लोगों ने भी खुल कर सहयोग किया था। मंदिर के पास स्थित तालाब का आज नामोनिशान मिट चुका है और तालाब को पाट कर गार्डन बना दिया गया है।
मंदिर में रामेश्वरम से ‘श्रीराम’ नामक लाई गई आधारशिला आकर्षण का केंद्र है। यह हमेशा पानी में तैरता रहता है। पत्थर के ऊपर ‘श्रीराम’ शब्द आज भी दर्ज है। इसके अलावा मंदिर में श्री राम-सीता, हनुमान, साईं बाबा, काल भैरव, शनिदेव सहित अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां स्थापित की गई हैं। सावन के सोमवार को मंदिर में हजारों श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है और आम दिनों में अधिकतर स्थानीय लोग दर्शन के लिए आते हैं। इसके अलावा अन्य देवी-देवताओं की पूजा और अभिषेक के लिए भी प्रतिदिन बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां आते हैं। स्वयंभू पालेश्वर महादेव मंदिर में महाशिवरात्रि तथा सावन मास महोत्सव धूमधाम से आयोजित किया जाता है।
श्रद्धालुओं की आस्था को देखते हुए यहां शनि जयंती, महाशिवरात्रि, गुढीपाडवा, आषाढ़ी दाड़ी सहित कई धार्मिक अनुष्ठान का आयोजन किया जाता है। यहां की महाशिवरात्रि काफी लोकप्रिय है। इस दिन यहां भंडारे का आयोजन किया जाता है।
इन दिनों मंदिर के अंदर 9 ग्रहों के निर्माण की प्रक्रिया चल रही है। इसके साथ ही यहां कार्तिक स्वामी की मूर्ति स्थापित करने की योजना भी है। मंदिर के खर्च के लिए पूजा व आयुर्वेदिक दुकान का संचालन किया जा रहा है। मंदिर में गाय की सेवा आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। पूजा के बाद मंदिर के बाहर निकलते समय यहां गाय की सेवा करनी होती है। शिवरात्रि में यहां तीन दिनों तक उत्सव चलता है और इस दौरान अन्न दान किया जाता है।






