इनके' पैर भूलकर भी न छुएं,
हिंदू धर्म में पैर छूने की परंपरा का विशेष महत्व है। इसे विनम्रता, आदर, और संस्कार का प्रतीक माना जाता है। किसी के चरण स्पर्श करने का अर्थ उसके प्रति सम्मान व्यक्त करना है। इसलिए बड़े-बुजुर्गों, माता-पिता और गुरुजनों के पैर छुए जाते हैं। ऐसे में पैर छूने के भी कुछ नियम होते हैं, और हर किसी के पैर छूना उचित नहीं माना गया है। ऐसे में आइए जानते हैं किन लोगों के पैर छूना वर्जित है और पैर छूने के नियम क्या हैं।
लड़कियां क्यों नहीं छूती माता-पिता के पैर
माता-पिता अपनी बेटियों से पैर नहीं छुवाते, यह भारत की एक प्राचीन परम्परा है। क्योंकि अविवाहित कन्याओं को माता का स्वरूप माना जाता है और उनके पैर छूकर उनका आशीर्वाद लेना भी बहुत अहम माना जाता है। इसलिए माता-पिता अपनी बेटियों से चरण स्पर्श नहीं कराते।
स्वास्थ्य या मानसिक संतुलन ठीक न होने वालों के
कहा जाता है कि, जिन लोगों की मानसिक स्थिति ठीक न हो, या जिनकी सोच में स्थिरता न हो, उनके पैर छूना भी उचित नहीं माना गया है।
भांजों से क्यों न कराएं चरण स्पर्श
अपने भांजे से भी चरणस्पर्श नहीं कारने चाहिए, क्योंकि भांजे को भगवान का स्वरूप माना गया है। भांजियां भी अपने मामा के चरण स्पर्श नहीं करती।
छोटे बच्चों के पैर छूने की आवश्यकता नहीं होती
पैर छूने का तात्पर्य सम्मान और आशीर्वाद प्राप्त करने से है। बच्चे स्वयं दूसरों से आशीर्वाद लेने की अवस्था में होते हैं, इसलिए छोटे बच्चों के पैर नहीं छुए जाते।
माता-पिता, गुरु, और अन्य बुजुर्गों के पैर छूना सदा शुभ माना गया है। इससे उनकी सकारात्मक ऊर्जा और आशीर्वाद प्राप्त होता है।
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संत, साधु-महात्मा, और धार्मिक गुरुओं का आशीर्वाद लेने के लिए उनके पैर छूना शुभ माना जाता है।
उन लोगों का पैर छूना लाभकारी माना गया है जो अपने धर्म और कर्तव्यों का पालन करते हैं और अच्छे आचरण वाले होते हैं।
पैर छूने का क्या है महत्व
पैर छूना न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह आदर, प्रेम और सम्मान का प्रतीक भी है। ऐसा माना जाता है कि इस क्रिया से सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है, और आशीर्वाद देने वाले का शुभ प्रभाव मिलता है। इन नियमों का पालन करके पैर छूने की परंपरा को सही तरीके से निभाया जा सकता है और इसका आध्यात्मिक लाभ भी प्राप्त किया जा सकता है।