
बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम व आरजेडी नेता तेजस्वी यादव (सोर्स-सोशल मीडिया)
पटना : हालांकि एनडीए की तुलना में कुछ देर से, लेकिन अब बिहार में महागठबंधन की चुनावी तैयारियां पटरी पर आती दिख रही हैं। परंतु, आपसी वर्चस्व की होड़ अब भी थमी नहीं है। इस बीच, आरजेडी ने तालमेल समिति में अधिक भागीदारी के रूप में पहली जीत दर्ज कर ली है। कांग्रेस की पहल पर बनी इस तालमेल समिति की बागडोर अब तेजस्वी यादव के हाथों में है, जिससे आरजेडी की पकड़ और मजबूत हुई है।
17 अप्रैल को हुई महागठबंधन की पहली बैठक में तालमेल समिति बनाने का फैसला लिया गया, जिसमें सभी चुनावी फैसलों की जिम्मेदारी इसी समिति को दी गई। शुरुआत में समिति में 12 सदस्य रखने की बात थी, जिसमें 6 घटक दलों से दो-दो सदस्य शामिल होने थे। लेकिन 24 अप्रैल को हुई दूसरी बैठक में इसका संशोधन कर सदस्यों की संख्या 21 कर दी गई, जिसमें से सबसे अधिक 5 सदस्य आरजेडी के होंगे।
इसके बाद कांग्रेस को 4, जब्कि शेष वामपंथी दलों और विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) को 3-3 सदस्य देने पर सहमति बनी। यानी संख्या के लिहाज से आरजेडी को अब तालमेल समिति में निर्णायक बढ़त मिल चुकी है, जो किसी भी अहम फैसले में उसकी भूमिका को केंद्रीय बना देगा।
तालमेल समिति का मुख्य उद्देश्य सीट बंटवारे, कॉमन मिनिमम प्रोग्राम (CMP) और चुनावी घोषणापत्र को अंतिम रूप देना है। इसमें से CMP और घोषणापत्र को लेकर सभी दलों के बीच आम सहमति बनने की उम्मीद है, लेकिन सीट बंटवारे पर पेच फंस सकता है। यही वह मोर्चा है जहां सभी दल अपने प्रभाव और जनाधार का हवाला देते हुए ज्यादा सीटों की मांग करेंगे।
आरजेडी के पास अधिक सदस्य होने का फायदा यह होगा कि वह समिति के अंदर अपने पक्ष में बहुमत जुटा सकेगी, जिससे कांग्रेस और अन्य छोटे दलों पर दबाव बनाया जा सकेगा। एक आरजेडी नेता का कहना है कि वामपंथी दल और वीआईपी पार्टी के फैसलों में भी आरजेडी का हित प्राथमिक रहेगा।
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हालांकि समिति की संरचना तय हो गई है, पर मुख्यमंत्री पद के चेहरे को लेकर कांग्रेस की चुप्पी अब भी चिंता का विषय बनी हुई है। इससे सीट बंटवारे के दौरान पेंच फंसने की संभावना बनी रहती है। अगर कांग्रेस अपने सीएम चेहरे पर कोई दावा करती है तो यह तेजस्वी की रणनीति के लिए चुनौती बन सकता है।






